तरबूज से बवासीर का अनुभूत व चमत्कारी इलाज़
तरबूज से बवासीर का अनुभूत व चमत्कारी इलाज़
सिर-दर्द-सिर-दर्द कई प्रकार का होता है। ऐसे सिर-दर्द के लिये जो गर्मी के कारण हो, नीचे लिखे टोटके लाभदायक हैं। केवल यह देख लिया जाए कि रोगी में गर्मी के चिह्न पाए जाते हैं या नहीं, अर्थात् यदि रोगी का मिर हाय लगाने पर गर्म अनुभए हो, या रोगी को सिर-दर्द की शिकायत प्रांच के निकट बैठने या धूप मे चलने-फिरने के कारण शुरू हो तो ये नुम्जे लाभदायक है :
तरबूज का गूदा मलमल के वारीक तथा स्वच्छ रुमाल मे डाल कर निचोड़ें और रस को कांच के गिलास में डालकर थोडी मिश्री मिला कर प्रात पिलाना चाहिए, पाराम होगा।
तरबूज के बीज या गिरी उरल या कूडी इत्यादि मे डाल कर और पानी मिलाकर खूब घोटें कि मक्खन के समान मुलायम लेप बन जाए। रोगी के मिर पर यह लेप कर दे, सिर-दर्द तुरन्त ठीक हो जायगा ।
वहम और पागलपन-यदि रोगी के वहम की तीव्रता के कारण पागलपन का भय हो रहा हो, दिन-भर इसी प्रकार के विचार सताते रहते हो, नींद बहुत कम पाती हो तो निम्नलिखित नुम्बे उपयोग में लाएँ। इनके निरन्तर उपयोग द्वारा इक्कीस दिन मे यह रोग दूर होकर रोगी स्वस्थ हो जाता है -
(1) तरबूज का गूदा निचोड कर निकाला हुआ एक कप रस गाए का दूध एक कप, मिथी तीस ग्राम-एक सफेद बोतल में डाल कर रात्रि-समय चांद के प्रकाश में किसी खू टी ग्रादि से लटका दें और प्रात निराहार रोगी को पिला दें, ऐसा इक्कीस दिन निरन्तर करते रहें, दिनोदिन वहम मिटता जाएगा।
(2) पन्द्रह ग्राम तरबूज के बीज की गिरी-राग्रि-समय पानी में भिगो दें और प्रात घोट कर इसमे तीस ग्राम मिश्री तथा पचास ग्राम गाए का मक्खन मिला कर सेवन कराने से वहम दूर हो जाता है । इममे यदि चार दाने छोटी इलायची भी मिला लें तो उत्तम है।
यदि भोजन के पश्चात् कलेजा जलने लगता हो और फिर के हो जाती हो-ौर के मे भोजन पीलापन लिए निकलता हो तो इसके लिये तरबूज सर्वोत्तम चिकित्सा है। प्रतिदिन प्रात. एक कप तरबूज का रस थोडी मिश्री मिला कर पी लिया करें, पाचन ठीक होकर के की शिकायत जाती रहेगी। तरबूज निस्सन्देह एक मीठा और स्वादु फल है, परन्तु यदि इस पर काली मिर्च, काला जीरा तथा पिसा हुआ नमक छिडक लिया जाए तो न केवल इसका स्वाद बढ जाता है बल्कि सर्वोत्तम पाचन औषधि भी बन जाता है। इसे खाते ही निरन्तर डकार आकर भूख चमक उठती है ।
प्यास की तीव्रता-जिस व्यक्ति को बार-बार प्याम लगती हो और वह बार-बार पानी पीकर भी मन्तण्ट न होता हो, उसके लिए तरबूज सेवन एक सर्वोत्तम चिकित्सा है । क्योकि इससे मन प्रसन्न होकर सन्तुष्टि हो जाती हैं। आवश्यकतानुमार तरबूज का पानी निकाल कर कांच के गिलास मे भर लें और इसमे थोडी मिथी या कजबीन मिला कर पिलाएँ, बस अन्दर पहुँचने की देर है प्यास तुरन्त दूर हो जाती है।
यदि प्याम की शिकायत क्षणिक हो तो दो या तीन वार मे, वरन् पुरानी होने की हालत मे निरन्तर सात-पाठ दिन तक पिलाते रहने से पूर्ण स्वस्य हो जाता है।
हृदय घड़कन-तरवूज की गिरी एक तोला पानी में घोट छानकर मिश्री या चीनी से मीठा करके ठण्डाई के रूप में दिन में दो-तीन बार पिलाएं।
दिनोदिन इसका लाभ अनुभव होता जाएगा। इससे हृदय धडकन और हृदय की कमजोरी को पूर्ण आराम हो जाता है।
एक रोगी जो कि दिन में दो-तीन बार मूछित होकर गिर जाया करता था, इस उपचार से स्वस्य हो गया ।
कब्ज- कब्ज के लिए भी कई दिन तक तरबूज का उपयोग करना लाभदायक है, क्योकि जहा तरवूज खाने से मूत्र जारी होता है वहीं शोच भी खूब बुल कर होता है। निरन्तर दस दिन खाकर देखिये, फिर कहिएगा कि फज कहा गई।
सूजाक- तरबूज मे ऊपर से इस ढग से छिद्र करें कि इसे निकाले हुए टुकडे से फिर बन्द किया जा सके । अब इसमे शोरा कलमी पाठ ग्राम और मियी माठ ग्राम डालकर फिर ऊपर से बन्द कर रात्रि ममय चादनी में रख दें। प्रात मलमल के स्वच्छ रूमाल से छान कर काच के गिलास मे रोगी को पिलाए, मात-दिन मे सूजाक को अवश्य आराम होगा।
गर्मी का ज्वर- वैद्यो ने ज्वर हो जाने के बहुत से कारण वताए हैं। उनमे एक यह भी है कि मनुष्य धूप में अधिक चलने फिरने से भी ज्वर मे ग्रस्त हो जाता है। इसलिए यहाँ ऐसे ज्वर की ही चिकित्सा दी जा रही है जो गर्मी के कारण हुआ हो। ऐसे ज्वर के लिये तरबूज एक बहुत बढिया उपचार है। दिन में दो-तीन बार इच्छानुकूल तरवूज खाइये, ज्वर उतर जाएगा।
बवासीर- बवासीर एक ऐसा रोग है जिनके पजे मे आजकल नव्वे प्रतिशत लोग जकडे हुए हैं । बवासीर के लिए यहां एक कई बार का अनुभूत व चमत्कारी नुम्खा दिया जा रहा है जो कि प्रत्यन्त सुलभ और मरल होने के वावजूद बहुत गुणकारी है।
एक बड़ा और अच्छा तरबूज लेकर ऊपर से एक टुकडा चाकू या छुरी से काट लें, और इस तरबूज में सवा-सौ ग्राम मजीठ और सवा-सौ मिश्री कूजा चढिया या बीकानेरी मिश्रो वारीक करके डालें ऊपर से वही कटा हुआ टुकडा लगा दें। अब इसे किमी अनाज की बोरी मे पन्द्रह दिन तक पडा रहने दें और तत्पश्चात् निकल लें । तरबूज मे मे जो रस निकले उसे मलमल के स्वच्छ रूमाल द्वारा निचोड़ें और शीशी मे डाल रखें।
सेवन-विधि- सारा रस सात रोज मे पी ले, बवासीर मे छुटकारा मिल जाएगा । गर्म पदार्थ विशेपत मिर्च, लहसुन, गुड तथा बैगन इत्यादि से परहेज करें और भोजन मे मूंग की दाल, रोटी, दूध-घी इत्यादि ही रहे।
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