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    बुद्ध की मृत्यु -ओशो

    बुद्ध की मृत्यु -ओशो

    बुद्ध की मृत्यु -ओशो

    बुद्ध एक गांव में ठहरे हैं
    अंतिम दिन, जहां उनकी
    बाद में मृत्यु हुई
    एक गरीब आदमी ने उन्हें भोजन पर बुलाया।
    बिहार के गरीब सब्जी
    तो नहीं जुटा पाते थे।
    अब भी नहीं जुटा पाते हैं।
    तो कुकुरमुत्ता बरसात में पैदा हो जाता है
    वृक्षों पर, पत्थरों पर,
    जमीन में—छतरी,
    उसको ही काटकर रख लेते हैं।
    फिर उसे सुखा लेते हैं।
    फिर उसी की सब्जी बना लेते हैं।
    गरीब था आदमी।
    उसके घर में कोई सब्जी न थी।
    लेकिन बुद्ध को निमंत्रण कर आया,
    तो कुकुरमुत्ते की सब्जी बनाई।
    कुकुरमुत्ता कभी—कभी विषाक्त हो जाता है,
    पायजनस हो जाता है।
    कहीं भी उगता है;
    अक्सर गंदी जगहों में उगता है।
    वह सूखा कुकुरमुत्ता विषाक्त था।
    बुद्ध ने चखा,
    तो वह कडुवा था।
    लेकिन वह गरीब पंखा झल रहा था,
    और उसकी आंखों से आनंद के आसू बह रहे थे।
    तो बुद्ध ने कुछ कहा न,
    वे खाते चले गए। वह कड़वा जहर था।
    लौटे तो बेहोश हो गए।
    चिकित्सकों ने कहा कि बचना मुश्किल है।
    खून में जहर फैल गया है।
    उस आदमी ने बेचारे ने कहा कि
    आपने कहा क्यों नहीं कि कडुवा है!
    बुद्ध ने कहा,
    देखा मैंने तुम्हारे आंखों के आसुओ को,
    उनके आनंद को देखा मैंने कुकुरमुत्ते के
    कडवेपन को।
    देखा मैंने मेरे खून में फैलते हुए जहर को।
    देखा मैंने मेरी आती हुई मौत को।
    फिर मैंने कहा,
    मौत तो रोकी नहीं जा सकती,
    आज नहीं कल आ ही जाएगी।
    कुकुरमुत्ता कडुवा है,
    इसमें नाराजगी क्या!
    जहर मिल गया होगा।
    तुम इतने आनंदित हो
    कि जो मृत्यु आने ही वाली है,
    जो रोकी न जा सकेगी,
    आज—कल आ ही जाएगी,
    उस छोटी—सी घटना के
    लिए तुम्हारी खुशी को
    छीनने वाला क्यों मैं बनूं?
    कहूं कि कडुवा है,
    तो तुम्हारी खुशी कडवी हो जाए।
    और सब चीजें अपने गुण से हो रही हैं
    जहर कडुवा है,
    भोजन कराने वाला आनंदित है,
    भोजन करने वाला भी आनंदित है।
    बुद्ध ने कहा, मैं पूरा आनंदित हूं।
    जहर मुझे नहीं मार पाएगा।
    जहर जिसे मार सकता है,
    उसे मार लेगा।
    जहर का जो गुण है,
    वह शरीर के जो गुण हैं,
    उन पर काम कर जाएगा।
    मैं देखने वाला हूं,
    मैं मरने वाला नहीं हूं।
    लेकिन बुद्ध की मृत्यु हो गई।
    मृत्यु के पहले बुद्ध ने अपने
    भिक्षुओं को बुलाकर कहा कि
    जाओ गांव में डुंडी पीट दो,
    सारे गांव में खबर कर दो कि
    जिस आदमी ने बुद्ध को
    अंतिम भोजन दिया,
    वह परम पुण्यशाली है।
    भिक्षुओं ने कहा,
    आप क्या कहते हैं!
    वह आदमी हत्यारा है।
    बुद्ध ने कहा, तुम्हें पता नहीं है;
    कभी—कभी हजारों—लाखों वर्षों
    में बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा होता है।
    उसको जो मां पहली दफे भोजन देती है,
    वह भी धन्यभागी है।
    और जो आदमी उसे अंतिम भोजन देता है,
    वह भी कम धन्यभागी नहीं है।
    इस आदमी ने मुझे अंतिम भोजन दिया,
    यह बहुत धन्यभागी है।
    और भिक्षु तो चले गए;
    आनंद रुका रहा।
    आनंद ने बुद्ध से कहा कि मेरा मन नहीं होता,
    आप यह क्या कह रहे हैं!
    बुद्ध ने कहा,
    आनंद तू समझता नहीं।
    जहर ने अपना काम किया,
    उस आदमी ने अपना काम किया।
    मैं बुद्ध हूं मुझे मेरे गुणधर्म के
    अनुसार काम करने दो,
    अन्यथा लोग क्या कहेंगे।
    और अगर मैं यह कहकर न जाऊं
    और मर जाऊं,
    तो मुझे खयाल है कि तुम
    मिलकर कहीं उसकी हत्या न कर दो!
    कहीं उसके घर में आग न लगा दो!
    अगर तुमने यह भी न किया,
    तो वह जन्मों—जन्मों के लिए नाहक
    अपमानित और निंदित तो हो ही जाएगा।

    -ओशो


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