प्रेम ओर विवाह--ओशो
संभोग से समाधि की ओर
प्रेम ओर विवाह--ओशो
प्रेम ओर विवाह–
प्रेम जो है, वह व्यक्तित्व की तृप्ति का चरम बिंदु है। और जब प्रेम नहीं मिलता है तो व्यक्तित्व हमेशा मांग करता है कि मुझे पूर्ति चाहिए। व्यक्तित्व हमेशा तड़पता हुआ अतृप्त हमेशा अधूरा बेचैन रहता है। यह तड़पता हुआ व्यक्तित्व समाज में अनाचार पैदा करता है। क्योंकि तड़पता हुआ व्यक्तित्व प्रेम को खोजने निकलता है। उसे विवाह में प्रेम नहीं मिलता। वह विवाह के अतिरक्ति प्रेम को खोजने की कोशिश करता है।
प्रेम जो है, वह व्यक्तित्व की तृप्ति का चरम बिंदु है। और जब प्रेम नहीं मिलता है तो व्यक्तित्व हमेशा मांग करता है कि मुझे पूर्ति चाहिए। व्यक्तित्व हमेशा तड़पता हुआ अतृप्त हमेशा अधूरा बेचैन रहता है। यह तड़पता हुआ व्यक्तित्व समाज में अनाचार पैदा करता है। क्योंकि तड़पता हुआ व्यक्तित्व प्रेम को खोजने निकलता है। उसे विवाह में प्रेम नहीं मिलता। वह विवाह के अतिरक्ति प्रेम को खोजने की कोशिश करता है।
वेश्याएं पैदा होती है विवाह के कारण।
विवाह है मूल,रूट। विवाह है जड़ वेश्याओं के पैदा करने की। और अब तक तो स्त्री वेश्याएं थी, किंतु अब तो सभ्य मुल्कों में पुरूष वेश्याएं मेल प्रास्टीट्यूट उपलब्ध है। वेश्याएं पैदा होगीं। क्योंकि परिवार में जो प्रेम उपलब्ध होना चाहिए था। वह नहीं उपलब्ध हो रहा है। आदमी दूसरे घरों में झांक रहा है उस प्रेम के लिए। वेश्याएं होगी।
और अगर वेश्याएं रोक दी जायेगी तो दूसरे परिवारों में पीछे के द्वारों से पाप के रास्ते निर्मित होंगे। इसीलिए तो सारे समाज ने यह तय कर लिया है कि कुछ वेश्याएं निश्चित कर दो। ताकि परिवारों का आचरण सुरक्षित रहे। स्त्रीयों को पीड़ा में डाल दो। ताकि बाकी स्त्रियां पतिव्रता बनी रह सके।
लेकिन जो समाज ऐसा अनैतिक उपाय खोजता है, जिस समाज में वेश्याएं जैसी अनैतिक संस्थाएं ईजाद करना पड़ती है, जान लेना चाहिए कि वह पूरा समाज बुनियादी रूप में पूरा अनैतिक होगा। अन्यथा यह अनैतिक ईजाद की आवश्यकता नहीं थी।
वेश्या पैदा होती है, अनाचार पैदा होता है, व्यभिचार पैदा होता है। तलाक पैदा होते है। यदि तलाक न होता न व्यभिचार होता,और न अनाचार होत, तो घर एक चौबीस घंटे का मानसिक तनाव, ऐंग्जाइटी बन जाता।
सारी दुनिया में पागलों की संख्या बढती गयी है। ये पागल परिवार के भीतर पैदा होते है।
सारी दुनियां में स्त्रियां हिस्टीरिया और न्यूरोसिस से पीड़ित है। विक्षिप्त उन्माद से भरती चली जा रही है। बेहोश होती गिरती है, चिल्लाती है।
पुरूष पागल होते चले जा रहे है। एक घंटे में जमीन पर एक हजार आत्म हत्याएँ हो जाती है। और हम चिल्लाये जा रहे है—समाज हमारा बहुत महान है। ऋषि-मुनियों ने निर्मित किया है। हम चिल्लाये जा रहे है कि बहुत सोच-विचार से समाज के आधार रखे गये है। कैसे ऋषि-मुनि और कैसे ये आधार। अभी एक घंटा मैं बोलूं तो इस बीच एक हजार आदमी कहीं छुरा मार लेंगे। तो कहीं ट्रेन के नीचे लेट जायेंगे। तो कोई जहर पी लेगा। उन एक हजार लोगों की जिंदगी कैसी होगी, जो हर घंटे मरने को तैयार हो जाते है?
आप यह मत सोचना कि वे जो नहीं मरते है, वे बहुत सुखमय है। कुल जमा कारण यह है कि वे मरने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। उनके सुख का कोई भी सवाल नहीं है। वे कायर है। मरने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है तो जिये चले जाते है। धक्के खाये चले जाते है। सोचते है, आज गलत है तो कल ठीक हो जायेगा। परसों सब ठीक हो जायेगा। लेकिन मस्तिष्क उनके रूग्ण होते चले जाते है।
प्रेम के अतिरिक्त कोई आदमी कभी स्वस्थ नहीं हो सकता।
प्रेम जीवन में न हो तो मस्तिष्क रूग्ण होगा। चिंता से भरेगा, आदमी शराब पियेगा। नशा करेगा। कहीं जाकर अपने को भूल जाना चाहेगा। दुनिया में बढ़ती हुई शराब शराबियों के कारण नहीं है। परिवार ने उस हालत में ला दिया है लोगों को कि बिना बेहोश हुए थोड़ी देर के लिए भी रास्ता मिलना मुश्किल हो गया है। तो लोग शराब पीने चले जायेंगे। लोग बेहोश पड़े रहेंगे लोग हत्या करेंगे, लोग पागल होते चले जायेंगे।
अमरीका में प्रतिदिन बीस लाख आदमी अपना मानसिक इलाज करवा रहे है। ये सरकारी आंकड़े है। आप तो भली भांति जानते है सरकारी आंकड़े कभी भी सही नहीं होते है। बीस लाख सरकार कहती है। तो कितने लोग इलाज करा रहे होंगे। यह कहना मुश्किल है। जो अमरीका की हालत है वह सारी दुनियां की हालत है।
आधुनिक युग के मानविद यह कहते है कि करीब-करीब चार आदमियों में दो आदमी एबनार्मल हो गये है। चार आदमियों में तीन आदमी रूग्ण हो गये है। स्वस्थ नहीं है। जिस समाज में चार आदमियों में तीन आदमी मानसिक रूप से रूग्ण हो जाते हों, उस समाज के आधारों को उसकी बुनियादों को फिर से सोच लेना जरूरी है। नहीं तो कल चार आदमी भी रूग्ण होंगे और फिर सोचने वाले भी शेष नहीं रह जायेंगे। फिर बहुत मुश्किल हो जायेगी।
लेकिन होता ऐसा है कि जब एक ही बीमारी से सारे लोग ग्रसित हो जाते है। तो उस बीमारी का पता नहीं चलता। हम सब एक जैसे रूग्ण, बीमार, परेशान है; तो हमें पता नहीं चलता। सभी ऐसे हैइसीलिस स्वस्थ मालूम पड़ते है। जब सभी ऐसे है, तो ठीक है। दुनियां चलती है, यही जीवन हे। जब ऐसी पीड़ा दिखाई देती है तो हम ऋषि-मुनियों के बचन दोहराते है कि वह तो ऋषि-मुनियों ने पहले ही कह दिया था। की जीवन दुःख है।
यह जीवन दुःख नहीं है। यह दुःख हम बनाये हुए है। वह तो पहले ही ऋषि-मुनियों ने कह दिया था। कि जीवन तो आसार है, उससे छुटकारा पाना चाहिए। जीवन असार नहीं है। यह असार हमने बनाया हुआ है।
जीवन से छुटकारा पाने की सब बातें दो कौड़ी की है। क्योंकि जो आदमी जीवन से छुटकारा पाने की कोशिश करता है वह प्रभु को कभी उपलब्ध नहीं हो सकता। क्योंकि जीवन प्रभु है, जीवन परमात्मा है। जीवन में परमात्मा ही तो प्रकट हो रहा है। उससे जो दूर भागेगा,वह परमात्मा से ही दूर चला जायेगा।
जब एक सी बीमारी पकड़ती है। तो किसी को पता नहीं चलता है। पूरी आदमियत जड़ से रूग्ण है। इसलिए पता नहीं चलता, तो दूसरी तरकीबें खोजते है इलाज के लिए। मूल कारण, एक्जुअलटि जो है, बुनियादी कारण जो है। उसको सोचते नहीं। ऊपरी इलाज भी क्या सोचते है? एक आदमी शराब पीने लगता है। जीवन से घबराकर। एक आदमी नृत्य देखने लगता है, वेश्या के घर जाकर, दूसरा आदमी सिनेमा में बैठ जाता है। तीसरा आदमी चुनाव लड़ने लगता है। ताकि भूल जाय सबको। चौथा आदमी मंदिर में जाकर भजन कीर्तन करने वाला भी खुद के जीवन को भूलने की कोशिश कर रहा है। यह कोई परमात्मा को पाने का रास्ता नहीं है।
परमात्मा तो जीवन में प्रवेश से उपलब्ध होता है। जीवन से भागने से नहीं। ये सब पलायन एस्केप है। एक आदमी मंदिर में भजन कीर्तन कर रहा है हिल-डुल रहा है। हम कहते है कि भक्त जी बहुत आनंदित है। भक्ति जी आनंदित नहीं हो रहा है। भक्त जी किसी दुःख से भोगे हुए है। वह भुलाने की कोशिश कर रहे है। शराब काही यह दूसरा रूप है। यह आध्यात्मिक नशा, स्प्रिचुअल इंटाक्सीकेशन, यह अध्यात्म के नाम से नहीं शराबें है। जो सारी दुनिया में जलती है। इन लोगों ने भाग-भाग कर जिंदगी को बदला नहीं आज तक। जिंदगी वहीं की वही दुःख से भरी हुई है। और जब भी कोई दुःखी हो जाता है वह भी इनके पीछे चला जाता है। कि हमको भी गुरु मंत्र दे दें। हमारा भी कान फूंक दें कि हम भी इसी तरह सुखी हो जायें। जैसे आप हो गये है। लेकिन यह जिंदगी क्यों दुःख पैदा कर रही है। इसको देखने के लिए इसके विज्ञान को खोजने के लिए कोई भी जाता नहीं है।
मेरी दृष्टि में यह है कि जहां जीवन की शुरूआत होती है, वहीं कुछ गड़बड़ हो गयी है। वह गड़बड़ यह हो गयी है कि हमने मनुष्य जाति पर प्रेम की जगह विवाह थोप दिया है। यदि विवाह होगा तो ये सारे रूप पैदा होंगे। और जब दो व्यक्ति एक दूसरे से बंध जाते है और उनके जीवन में कोई शांति और तृप्ति नहीं मिलती, तो वे दोनों एक दूसरे पर क्रुद्ध हो जाते है। कि तेरे कारण मुझे शांति नहीं मिल रही। वे कहते है, ‘’तेरे कारण मुझे शांति नहीं मिल पा रही है।‘’ वे एक दूसरे को सताना शुरू करते है। परेशान करना शुरू करते है। और इसी हैरानी इसी परेशानी इसी कलह के बीच बच्चों का जन्म होता है। ये बच्चे पैदाइश से ही विकृत परवर्टेड हो जाते है।
मेरी समझ में, मेरी दृष्टि में मेरी धारणा में जि दिन आदमी पूरी तरह आदमी के विज्ञान को विकसित करेगा। तो शायद आपको पता लगे कि दुनिया में बुद्ध कृष्ण और क्राइस्ट जैसे लोग शायद इसीलिए पैदा हो सके है कि उनमें मां-बाप ने जिस क्षण संभोग किया था, उस समय वे अपूर्व प्रेम से संयुक्त हुए थे। प्रेम के क्षण में गर्भस्थापन, कंसेप्शन हुआ था। यह कसी दिन जिस दिन जन्म विज्ञान पूरी तरह विकसित होगा। उस दिन शायद हमको यह पता चलेगा कि जो दुनिया मैं थोड़े से अद्भुत लोग हुए—शांत आनंदित, प्रभु को उपलब्ध—वे लोग वे ही थे। जिनका पहला अणु प्रेम की दीक्षा से उत्पन्न हुआ था। जिनका पहला अणु प्रेम के जीवन में सराबोर पैदा हुआ था।
मेरी समझ में, मेरी दृष्टि में मेरी धारणा में जि दिन आदमी पूरी तरह आदमी के विज्ञान को विकसित करेगा। तो शायद आपको पता लगे कि दुनिया में बुद्ध कृष्ण और क्राइस्ट जैसे लोग शायद इसीलिए पैदा हो सके है कि उनमें मां-बाप ने जिस क्षण संभोग किया था, उस समय वे अपूर्व प्रेम से संयुक्त हुए थे। प्रेम के क्षण में गर्भस्थापन, कंसेप्शन हुआ था। यह कसी दिन जिस दिन जन्म विज्ञान पूरी तरह विकसित होगा। उस दिन शायद हमको यह पता चलेगा कि जो दुनिया मैं थोड़े से अद्भुत लोग हुए—शांत आनंदित, प्रभु को उपलब्ध—वे लोग वे ही थे। जिनका पहला अणु प्रेम की दीक्षा से उत्पन्न हुआ था। जिनका पहला अणु प्रेम के जीवन में सराबोर पैदा हुआ था।
पति और पत्नी कलह से भरे हुए है, क्रोध से, ईर्ष्या से; एक दूसरे के प्रति संघर्ष से, अहंकार से, एक दूसरे की छाती पर चढ़े हुए है। एक दूसरे के मालिक बनना चाह रहे है। इसी बीच उनके बच्चे पैदा हो रहे है। ये बच्चे किसी आध्यात्मिक जीवन में कैसे प्रवेश पायेंगे?
मैंने सुना है एक घर में एक मां ने अपने बेटे और छोटी बेटी को—वे दोनों बेटे और बेटी बाहर मैदान में लड़ रहे थे। एक दूसरे पर घूंसेबाजी कर रहे थे—कहा कि आरे यह क्या कर रहे हो। कितनी बार मैने समझाया कि लड़ा मत करो, आपस में लड़ों मत। उस लड़के ने कहा,हम लड़ नहीं रहे है, हम तो मम्मी—डैडी का खेल कर रहे है। वी आर जाट फाइटिंग, बी आर प्ले इंग मम्मी डैडी। जो घर में रोज हो रहा है। वह हम दोहरा रहे है। यह खेल जन्म के क्षण से शुरू हो जाता है। इस संबंध में दो चार बातें समझ लेनी बहुत जरूरी है।
-ओशो
प्रेम और विवाहसंभोग से समाधि की और
प्रवचन—8
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