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    हल्दी के गुप्त उपाय

    Turmeric's Secret Remedies


    हल्दी के गुप्त उपाय

    मूत्र की अधिकता-

    यदि किमी व्यक्ति को बार-बार और अधिक मात्रा में मूत्र पाए तथा प्याम अधिक लगे तो इस रोग को वैद्य लोग मधुमेह कहते हैं । इस रोग को दूर करने के लिए हल्दी एक विशेष चीज़ है।

    हल्दी बारीक पीसकर रसें । आठ-पाठ ग्राम दिन में दो बार पानी के साथ दें। इस साधारण-सी प्रौपधि से पेनीदा और घातक रोगो का इलाज सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

    नोट-मधुमेह के रोगी को चीनी से परहेज करना चाहिए, ऐमे रोगी के लिए यह विप के समान है।

    कमजोर नजर-

    नज़र को कमजोरी के लिए निम्नलिखित नुम्या अत्यत गुणकारी है । म्बस्य व्यक्ति इसे मर्वदा उपयोग करता रहे तो पायुभर नजर ठीक रहेगी।

    हल्दी ढेला (गांठ) तीस ग्राम और कलमी शोरा पाठ ग्राम । दोनो मैदे की तरह बारीक पीस लें और शीशी मे मजबूत कार्क लगाकर रखें। प्रात.:व साय तीन-तीन सलाई डालना धुन्व और नजर की कमजोरी के लिए जादू जना प्रभाव रखता है । अाजमा कर देखिये ।

    हल्दी को खूब बारीक पीसकर शीशी में मावधानीपूर्वक रखें। रात्रि ममय तीन-तीन सलाइयां डालने से नजर की कमजोरी दूर होगी।

    आँख का घाव-

    यदि किसी कारणवश अांव में घाव हो गया हो तो उनके लिए हल्दी के ढेले को पानी की कुछ बूंदे टालकर पत्थर पर घिसें और मलाई ने आँख मे लगाएं । कुछ वार लगाने से घाव ठीक हो जायेगा।

    सफ़ेद दाग -

    सवा सौ ग्राम हल्दी को पाच सौ ग्राम मेथिन्लेटिड स्पिरिट में मिलाकर शीशी में डालें और कार्क लगाकर धूप मे रख दें। दिन में दो-तीन बार जोर से हिला दिया करें । तीन दिन पश्चात् छानकर फिर शीशी में रख लें-यही हल्दी का वेभिसाल टिकचर है।

    सेवन-विधि-दिन में दो-तीन बार मफेद दागो पर लगाएँ, सफेद दागो के लिए अत्यन्त हितकर है ।

    अद्भुत तेल- 

    पचास ग्राम हल्दी को मोटा-मोटा कूटकर मौ ग्राम पानी में उबालें। फिर पीन-छानकर केवल पानी ले लीजिए। इस पानी के बराबर मीठा तेल मिलाकर धीमी याच पर चढाइये । जब पानी जलकर केवल तेल बच रहे तो उतान्कर ठण्डा करके शीशी मे भर लें।

    सेवन विधि-इम तेल को जग-सा गर्म करके दो-तीन वू द कान मे प्रात व साय डालें। दस-बारह दिन के उपयोग से घाव ठीक होकर पीप का पाना बन्द हो जाएगा। यही तेल अन्य घावो पर लगाते रहने से भी धाव अच्छे हो जाते हैं।

    ममीरा हल्दी-

    यदि हल्दी को निम्नलिखित ढग से तैयार कर लिया जाए तो इसमे वे सभी गुण पैदा हो जाते हैं जो ममीरे में होते हैं।

    एक गाठ हल्दी लेकर कलईदार बर्तन मे डालें। फिर इस पर एक नीवू निचोड़ें। अब इसे कोयलो की आच पर रखकर पकाए । जब पानी सूख जाए तो दूसरा नीबू निचोडे और इसे भी सुखा दें। इस प्रकार सात नीबू का रस सुखा दें। बस अब यह हल्दी की गाठ ममीरे के गुणो से युक्त हो गई है।

    इसे बारीक पीसकर बराबर बजन काला मुरमा मिलाकर पूव गट ने, सुरमा तैयार है।

    रात्रि समय दो-तीन मलाई डाले । कुछ ही दिनों में घुघ, जाला नया रात्रि समय दिखाई न देना आदि रोगो मे आराम होगा।

    सुजाक तोड़-

    हल्दी की गाठ पांच ग्राम लेकर ढाई-गौ ग्राम यकी के कच्चे दूध में घिमें और तुरन्त सूजाक के रोगी को पिला दें। इस प्रकार प्रतिदिन प्रात पिलाने से कुछ दिनो मे मूजाक की जड़ें कट जाएगी। यह एक हकीम का अत्यन्त गुप्न नुम्खा है।

    निगेन्द्रिय मे घाव (

    सूजाक) हो तो प्राठ-पाठ ग्राम बारीक पिनी हुई हल्दी बकरी के दूध की छाछ या पानी के नाथ प्रात व शाम  सेवन  करवाएं। रोग की तेजी मे दोपहर समय भी दें।

    हल्दी और पावलो का काढा भी अत्यन्त हितकर है। इस काहे से मूत्र की जलन दूर होकर मूत्र माफ आने लगता है और पेट भी माफ हो जाता है।

    मुहं के छाले-

    हल्दी पन्द्रह ग्राम कूटकर एक किलो पानी मे उवालें, ठण्डा होने पर प्रात व माय गगरे करें। इससे गले, तालु और जिह्वा के छाले दूर हो जाते हैं।

    कठमाला बारीक पिसी हल्दी पाठ ग्राम प्रात. पानी के नाय सेवन करवाए। इसके अतिरिक्त हल्दी की गाठ को पत्थर पर कुछ बूदें पानी डालकर घिसें। जब गाढा-सा लेप तैयार हो जाए तो ऊपर लेप कर दें। कुछ दिनो के निरन्तर उपयोग मे रोग दूर हो जाएगा।

    पेट मे हवा भर जाना—

    जिस व्यक्ति के पेट में हवा भर गई हो - और इस कारण पेट मे अफारा हो रहा हो, उसकी तकलीफ का अनुमान कोई भगतभोगी ही कर सकता है । ऐसे अवसर पर पिसी हुई हल्दी दस रत्ती पोर - नमक दस रत्ती मिलाकर गर्म पानी से सेवन करवाएँ। इससे हवा खारिज

    होकर पेट हल्का हो जाता है। कई दिन तक उपयोग करने से हाजमे की • कमजोरी भी दूर हो जाती है।

    प्रांख की लाली-

    चोट लगने से या किमी और कारणवश आँख लाल हो जाए तो हल्दी स्वच्छ पत्थर पर घिमकर सलाई से लगाए । दो-तीन दिन में लाली माफ हो जाती है।

    चवल-दो-तीन वार दिन मे और रात्रि को सोते समय हल्दी के गाढे लेप से वर्षों पुराना चवल दूर हो जाता है।

    फुलबहरी-

    कोढ, फुलबहरी, कठमाला की शिकायत हो तो पाठआठ ग्राम हल्दी का चूर्ण प्रात. व साय पानी के साथ खाए और दिन में दोतीन बार लेप भी करें।

    विषैला डंक

    पागल कुत्ते के काटने पर पचास-साठ ग्राम हल्दी 'पानी के साथ सेवन कराने से तथा काटे स्थान पर हल्दी का लेप करने से लाभ होता है। विच्छ, भिड तथा मक्खी इत्यादि के डक पर भी हल्दी का लेप करना अत्यन्त हितकर है।

    बवासीर-

    पांच-पाच ग्राम हल्दी का चूर्ण दोनो समय बकरी के दूध की छाछ के साथ सेवन करना बवासीर का उत्तम इलाज है।

    बलगमी दमा-

    चार-चार ग्राम हल्दी का चूर्ण दिन में तीन बार सेवन करने से बलगमी दमा दूर हो जाता है।

    जुकाम-नज़ला-

    जुकाम, कफ आदि रोगो में हल्दी अत्यन्त हितकर 'सिद्ध हुई है। प्रयोग से यह प्रमाणित हुआ है कि कफ से रुके हुए गले मे मोर वहते हुए जुकाम मे हल्दी के उपयोग मे खुश्की पैदा हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कफ का बढना रुक जाता है ।

    पाच-पाच ग्राम हल्दी का चूर्ण प्रात. व साय गर्म पानी से सेवन किया जाए।

    गले के घाव-

    गले और तालु मे घाव हो तो एक किलो पानी में सत्तर ग्राम वारीक पिसी हुई हल्दी मिलाकर उबालें। जब चौथाई पानी वाकी रह जाए तब छानकर इससे गरारे करें। यह इलाज प्रात व साय दोनो समय करें।



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