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    ईमानदार गरीब

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    ईमानदार गरीब 

    सीलोन में एक जड़ी-बूटी बेचकर गुजारा करने वाला व्यक्ति रहता था। नाम था उसका महता शैसा। उसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी, कई कई दिन भूखा रहना पड़ता। उनकी माता चक्की पीसने की मजदूरी करती, बहिन फूल बेचती तब कहीं गुजारा हो पाता। ऐसी गरीबी में भी उनकी नीयत सावधान थी।

    महता एक दिन एक बगीचे में जड़ी-बूटी खोद रहे थे कि उन्हें कई घड़े भरी हुई अशर्फियाँ गड़ी हुई दिखाई दीं। उनके मन में दूसरे की चीज पर जरा भी लालच न आया और मिट्टी से ज्यों का त्यों ढक कर बगीचे के मालिक के पास पहुंचे और उसे अशर्फियाँ गड़े होने की सूचना दी। 

    बगीचे के मालिक लरोटा की आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब हो चली थी। कर्जदार उसे तंग किया करते थे। इतना धन पाकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। सूचना देने वाले शैसा को उसने चार सौ अशर्फियाँ पुरस्कार में देनी चाही पर उसने उन्हें लेने से इनकार कर दिया और कहा-"इसमें पुरस्कार लेने जैसी कोई बात नहीं, मैंने तो अपना कर्त्तव्य मात्र पूरा किया है।"

    बहुत दिन बाद लरोटा ने अपनी बहिन की शादी शैसा से कर दी और दहेज में कुछ धन देना चाहा। शैसा ने वह भी न लिया और अपने हाथ-पैर की मजदूरी करके दिन गुजारे।

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