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    जितना गहरा पार्टीसिपेशन होगा, उतने ईगोलेस हो जाएंगे - ओशो

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     जितना गहरा पार्टीसिपेशन होगा, उतने ईगोलेस हो जाएंगे - ओशो 

    एक जंगल से गुजर रहा है लाओत्से। जंगल में बड़े पैमाने पर दरख्त काटे जा रहे हैं। बहुत कारीगर लगे हैं और एक दरख्त नहीं है, जो बिना कटे बचा है। किसी राजा का राजमहल बन रहा है। लकड़ी काटी जा रही है। फिर भी एक वृक्ष इतना बड़ा है कि उसके नीचे एक हजार बैलगाड़ियां हैं। उस वृक्ष, की एक डाली भी नहीं काटी गयी है। तो लाओत्से ने कहा, आओ उस वृक्ष से पूछ लें कि राज क्या है? बचा कैसे? जब कि सब कटा जा रहा है। जंगल उजड़ा जा रहा है, तुम बचे कैसे? शिष्य से कहा, जाओ जरा वृक्ष से पूछो। यह वृक्ष बड़ा ज्ञानी मालूम होता है। शिष्य गए, चक्कर लगाकर आए कि वृक्ष तो कुछ बोलता नहीं। तो लाओत्से ने कहा, यह भी उसके ज्ञान का एक हिस्सा होगा। क्योंकि तुम जाकर बोले कि फंसे। लाओत्से ने कहा कि बोले कि फंसे। यह भी उसका हिस्सा होगा ज्ञान का। बड़ा होशियार है। फिर जाओ, उनसे पूछो जो दरख्तों को काट रहे हैं, दूसरे दरख्तों को, कि इस दरख्त को क्यों छोड़ दिया? शायद उनसे कुछ खबर लग जाए। क्योंकि कटने की घटना में दो ही चीजें हैं--एक तो वृक्ष होशियार हो और दूसरे काटनेवालों ने कैसे छोड़ दिया। काटनेवाले तो कुछ न कुछ करते! शिष्य गए हैं, और जो कारीगर काट रहे हैं, दूसरे वृक्षों को, लकड़ियां चीर रहे हैं, उनसे पूछते हैं, उस वृक्ष को क्यों नहीं काटते? वे कहते हैं, वह वृक्ष बिलकुल लाओत्से जैसा है। उन्होंने पूछा, क्या मतलब? वह वृक्ष इतना टेढ़ा-मेढ़ा है कि उसकी कोई लकड़ी सीधी नहीं होगी। वे शिष्य पूछते हैं कि इसको काटकर जला तो सकते हो। इस वृक्ष को जलाने से इतना धुआं छूटता है कि कोई उसका...तो तुम अपने गुरु से कहना कि वह वृक्ष बिलकुल लाओत्से जैसा है। तो लौटकर शिष्य गुरु से कहते हैं कि कारीगर कहते हैं कि वृक्ष बिलकुल लाओत्से जैसा है।

        तो उसने कहा, वह मैं समझ ही गया। वह इतना बेकार है, वह इसलिए आखिरी जगह खड़ा __ हो गया है कि ज्यादातर किसी को जरूरत ही नहीं पड़ती उसकी। लेकिन देखा, वह आखिरी जगह होकर कितना फल-फूल रहा है। उसकी शाखाएं कितनी दूर तक चली गयी है। कितने लोग उसके नीचे विश्राम ले रहे हैं। अगर उसने जरा भी कोशिश की होती अच्छा बनने की, तो वह काट गया होता। जिन्होंने अच्छा बनने की कोशिश की, वे कट रहे हैं। तो लाओत्से ने कहा, ठीक कहा उन कारीगरों ने। और उनसे कह देना जब निकलें वहां से कि लाओत्से कहता था कि तुम ठीक कह रहे हो। हम भी उसी वृक्ष की तरह हैं, इसीलिए खूब बड़े हो गए __ हैं। कोई काटने ही नहीं आया, क्योंकि उस जगह खड़े हैं, और इतना धुवां निकलना है। और लकड़ी चीरनेवालों ने कहा, वह बिलकुल बेकार है। वह किसी काम का नहीं है। अगर हम बहुत गौर से देखें, तो जितना गहरा पार्टीसिपेशन होगा, उतने ईगोलेस हो जाएंगे; क्योंकि ईगो ही तो पार्टीसिपेशन नहीं होने देता है।

    - ओशो 

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