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    प्रश्न--क्या आपको भारत में नव चिंतन के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे हैं--राजनीति में और समाज में?

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    प्रश्न--क्या आपको भारत में नव चिंतन के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे हैं--राजनीति में और समाज में?

    ओशो--अभी तो नहीं दिखाई दे रहे हैं। नहीं, कभी भी नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। यहां सब रिप्लसमेंट चल रहा है। मजा यह है कि भारत के वामपंथी से भी मैं हत परिचित हूं। फिर भी उसके भीतर अराजकता चित नहीं है। एक विद्रोह है, बगावत है। उसमें तोड़-फोड़ भी है, जल्दी बाजी भी है, और उसको लगता है कि यह गलत है, वह गलत है, लेकिन मैं सही हूं और गलत की जगह इसे बैठा दूं, यह आग्रह परिपूर्ण है। यानी बहत नया नहीं है वह। जब तक यह आग्रह है कि गुरु बदल कर मैं गुरु बन जाऊं, तब तक गुरुडम से मेरा विरोध नहीं है। गुरु से विरोध हो सकता है। यह गुरु गलत है, दूसरा गुरु चाहिए। मैं चाहता हूं, गुरुडम गलत है। उसमें माक्स भी गलत हैं और महावीर भी गलत हैं। प्रश्न--अस्पष्ट है। ओशो--मेरा मानना है कि आदमी के अनेक जन्म हैं, और सारे जन्मों का सार, निचोड़ स्मृति का हिस्सा है। वह कभी मिटता नहीं है। और उसका जो पूरा का पूरा कलेक्टिव अनुभव है, वह आपके भीतर आज भी मौजूद है। ध्यान के रास्ते हैं कि अपने सारे पुराने अनुभवों में उन्हें उतार सकते हैं। अपनी पुरानी पूरी स्मृतियों को जगा सकते हैं, जो आपने जन्मों-जन्मों में कभी किए हैं, और उस सारे अंश का आज आप उपयोग कर सकते हैं। इस तरह के ध्यान के प्रयोग का नाम जाति स्मरण है। बुद्ध और महावीर इस पर बहत मेहनत की है। बल्कि उन दोनों का दान ही वही है, और कोई खास दान नहीं है--रिमेंबरिंग आफ द पास्ट लाइफ। 

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