• Latest Posts

    प्रश्न--ओशो, अर्जुन न होते, तो शायद कृष्ण का उद्देश्य कुछ और ही होता?

    Question-Osho-if-Arjuna-had-not-been-there-then-perhaps-Krishnas-purpose-would-have-been-different


    प्रश्न--ओशो,अर्जुन न होते, तो शायद कृष्ण का उद्देश्य कुछ और ही होता?

    कृष्ण में कुछ और ही होता, अर्जुन के बिना कुछ और ही होता। वह अर्जुन ही था, जो उस उद्देश्य के पीछे का है। यानी ऊपर से ऐसा दिखता है कि बोलनेवाला बोल रहा है। यह इतनी सरल बात नहीं है। सुननेवाला भी बोलवा रहा है। वह निकाल रहा है, बहुत कुछ उस पर निर्भर करेगा। भीड़ में कोई नहीं है वहां। इधर मैं बहुत परेशान हुआ है। क्योंकि दिन-रात भीड़ ही भीड़ में हूं। भीड़ के पास न आत्मा होती है, न आंख होती है। इसलिए एक-एक व्यक्ति से सीधे आमने-सामने बात करने का जो रस है, मजा है! लेकिन आमतौर से नेतागण और गुरुजन सीधे बात करना पसंद नहीं करते हैं। सोचनेवाले आदमी को भी बर्दाश्त नहीं करते। हां, वह भीड़ ही चाहते हैं। भीड़ बिलकुल मशीन है। भीड़ से कोई डर नहीं है, भीड़ खंडन नहीं करती है, भीड़ उलटकर जवाब नहीं देती है। भीड़ से कोई टक्कर नहीं है, कोई चुनौती नहीं है। भीड़ इधर खड़ी है, डेड मास है। आप बोले चले जाते हैं, जो आपको बोलना है, कहना है, जब आप एक व्यक्ति के सामने खड़े होते हैं, तो एक जिंदा आदमी है और वह आपको कुछ भी बोलने नहीं देगा। टोकेगा भी, गलत भी कहेगा। लड़ेगा भी,झगडेगा भी। जब दो व्यक्ति बात-चीत करेंगे, तो उसमें एक बोलनेवाला, एक सुननेवाला, ऐसा नहीं रह जाता। वह दोनों बोलनेवाले होते हैं, और दोनों ही सुनने वाले भी होते हैं। और उसमें ऐसा नहीं होता है कि एक सत्य जानता है, और दूसरा नहीं जानता है। उसमें दोनों के संघर्ष से सत्य निकलता है। 

            लेकिन गुरु को खयाल होता है कि सत्य मेरे पास है, मुझे देना है, निकालने का सवाल कहां है? दे देना है, तो आप चुपचाप ले लो, रास्ते पहुंच जाओ। इसलिए आमतौर से धर्मगुरु हैं, नेता हैं भीड़ को चलानेवाले लोग हैं, व्यक्ति को पसंद नहीं करते हैं। व्यक्ति के साथ डर जाएंगे। और यह बड़े आश्चर्य की बात है कि जो लोग बड़ी-बड़ी भीड़ को प्रभावित करते हैं, वे एक छोटे से व्यक्ति से घबरा जाएंगे। हिटलर जैसा आदमी लाखों लोगों को कंपाएगा, लेकिन कमरे में एक आदमी के साथ अकेले नहीं बैठ सकता है घंटे भर। इतना डर जाएगा। शादी नहीं की है हिटलर ने मरने के दिन तक, इसीलिए कि और किसी को तो कमरे के बाहर रोक सकते हैं। लेकिन जिस औरत से शादी कर लेंगे, वह तो कमरे में साथ होगी। और साथ होने से इतना डर लगता है एक आदमी से। क्योंकि भीड़ में जो न तो है, वह अपने को व्यवस्थित कर लेता है। वह जैसा दिखाना चाहता है, वैसा हो जाता है। लेकिन चौबीस घंटे थोड़े ही पोज कर सकते हैं! चौबीस घंटे मुश्किल हो जाएगी, तो मर जाओगे। 

            तो हिटलर ने किसी को दोस्त नहीं माना जिंदगी भर। उसके जो साथ थे वे कहते थे, या तो तुम उसे दुश्मन हो सकते हो, या उसके अनुयायी हो सकते हो। दोस्त होने का कोई उपाय नहीं है। कोई उसके कंधे पर हाथ नहीं रख सकता है। और कोई उसके पास बैठ भी नहीं सकता। वह हमेशा मंच पर होगा मंच के नीचे होगे। साथ होने का उपाय नहीं है। नेता छोड़ते नहीं उपाय। व्यक्ति से सीधा उलझना बहुत कठिन बात है। और एक छोटे से छोटा आदमी इतना अदभुत आदमी है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। लेकिन भीड़ में कोई भी नहीं है, वह तो नोबडीनेस है। वहां बेधड़क है, कुछ भी नहीं है। इधर मुझे तो निरंतर ऐसा लगता है कि सीधा एक-एक व्यक्ति से पास में हो, तो उसका कुछ अर्थ है। कम्युकेशन है, संवाद है कुछ। 

    -ओशो 

    No comments