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    प्रश्न--ओशो श्री अरविंद ने सरेंडर करने को ही कहा था न?

    Question-Osho-Sri-Aurobindo-had-asked-to-surrender-didnt-he


    प्रश्न--श्री अरविंद ने सरेंडर करने को ही कहा था न? 

    ओशो--हां, हां, साधना इनकी भी है। सरेंडर साधारण बात नहीं है। लोग तो समझ लेते हैं कि साधारण मामला है, सरेंडर कर दिया। तुम सरेंडर हो ही नहीं सकते, जब तब अहंकार है। इसलिए मैं सरेंडर की बातें नहीं करता। मैं कहता हूं, अहंकार को जाने दो, सरेंडर हो जाएगा। तुम्हें करने की जरूरत नहीं है। बहत ठीक से समझो, तो सरेंडर किया ही हनी जा सकता। क्योंकि जब तक तुम करनेवाले हो, तो सरेंडर हो कैसे सकता है? तुम्हीं करोगे न? और कल तुम्हारा दिन होगा, तो वापस ले लोगे। और तुम तो हमेशा पीछे मौजूद हो। हमने सरेंडर किया, अब नहीं करना चाहते हैं, खत्म। लेकिन सरेंडर वापस थोड़े ही हो सकता है। वह तो वापस हो सकता है, जब तुम मिट गए हो। वापस लेनेवाला ही नहीं है, तो वापस होगा वहां? वह कभी नहीं हो सकता। एक हिस्सा तुम्हारे भीतर मौजूद रहेगा, जो कहेगा, यह तुमने विश्वास किया है।

         मैं एक कमरे में बैठा हूं, जहां अंधेरा है। मैं आंख बंद कर के पक्का विश्वास करता हूं कि उजाला है। लेकिन क्या यह संभव है कि मेरे मन के एक कोने से यह बात खत्म ही हो जाए कि अंधेरा नहीं है? क्योंकि जानता तो मैं अंधेरे को हं, और मान रहा हूं उजाले को। और जानना मानने से हमेशा बलवान होता है। जाते तुम हो कि अंधेरा है, मानते तुम हो कि उजाला है। मानते रहो, मानते रहो, कितना ही मान लो, एक हिस्से में तुम जानते ही रहोगे कि एक कोने पर अंधेरा था। और उजाला माना है। इसलिए टोटल कभी नहीं होगा सरेंडर। टोटल तो तब होगा, जब तुम जानोगे, जानने से चाहोगे, माने से नहीं। जो मानकर सरेंडर करेगा, उसका तो जानना व्यर्थ ही है। वह चाहे क्रिश्चियनिटी करवाए चाहे हिंदू करवाए, चाहे मुसलमान करवाए। इसलिए मेरा झगड़ा हिंदू, मुसलमान, ईसाई का नहीं है। मेरा झगड़ा तो मानकर करवाने वाले किसी से भी है। 

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