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    सुलस का हृदय-परिवर्तन


    सुलस का हृदय-परिवर्तन 

    राजगृही में एक कसाई रहता था। नाम था-'काल कसूरी' यथा नाम तथा गुण। वह प्रतिदिन एक सौ भैसों का वध किया करता था। धीरे-धीरे यह वृत्ति स्वभाव बन गई। वध किए बिना उसे चैन न मिलता।

    एक दिन उसने एक भैंसे पर तलवार चलाई। भैंसा मजबूत और बलवान था, कटा नहीं। सारी शक्ति लगाकर छटपटाया तब पिता की सहायता के लिए पास खड़ा सुलस भी जुट गया। उथल-पुथल में तलवार की नोंक बिचक गई और सुलस के पाँव में लग गई। उससे बच्चे को तीव्र वेदना हुई। उसने अनुभव किया कि भैंसा मूक प्राणी है बोल नहीं सकता तो क्या, पर इसे भी निस्संदेह ऐसी ही पीड़ा होती होगी। बालक ने निश्चय किया वह कभी भी पशुओं का वध नहीं करेगा।

    पर यह बात काल कसूरी के लिए संभाव्य न थी। एक दिन राजा श्रेणिक ने आज्ञा दी-"काल कसूरी! तुम्हारा अंतिम समय है अब तुम पशु वध बंद कर दो।" किंतु उसने सविनय उत्तर दिया-"महाराज! मेरे लिए यह असंभव है। संस्कार कितना ही बुरा हो पक जाता है तो ऐसा ही होता है, तब पाप भी पाप नहीं लगता वरन उससे भी मोह हो जाता है।"

    श्रेणिक ने उसे बंदीगृह में डाल दिया। पर वहाँ भी काल कसूरी की वह वृत्ति न छूटी। वह मिट्टी के भैंसे बनाता और लकड़ी की तलवार से उनका वध करता और इस तरह आत्म संतोष प्राप्त करता।

    मृत्यु का समय पास आया। उसने अपने बच्चे सुलस को बुलाकर आग्रह किया-"वत्स! मुझे आशा है कि तुम मेरी अंतिम इच्छा पूर्ण करोगे।" बच्चे ने कहा-"पिताजी! मेरे स्वभाव से विपरीत न होगा वह हर कार्य करने को तैयार हूँ।"

    काल कसूरी ने प्रसन्न होकर कहा-"मैं जानता है, तेरी इच्छा और रुचि का मुझे ध्यान है। ऐसा कुछ न कहूँगा जिससे तेरी भावनाएँ दुखें। मेरी इच्छा है मेरे न रहने पर तुम घर के मुखिया बनो।" बालक सुलस ने उसे स्वीकार कर लिया।

    ___ काल कसूरी की मृत्यु हो गई। नियत दिन सुलस को मुखिया बनाने की रस्म अदा की गई। अंत में कुलदेवी के सम्मुख भैसा खड़ा कर सुलस को बुलाया गया और उसका वध करने को कहा गया। पर वह स्तब्ध खड़ा रहा, तलवार ऊपर न उठी।

    बुजुर्गों ने कहा-"बेटे, यह कुल परंपरा है। जो मुखिया बनता है उसे देवी को प्रसन्न करने के लिए रक्तदान करना ही पड़ता है।" अच्छा यह बात है? पिताजी की इच्छा अपूर्ण न रहे, यह कह कर उसने तलवार चलाई और अपना पाँव काट दिया। परिजनों ने कहा"सुलस! तुमने यह क्या किया।" सब चीख-चिल्ला रहे थे। उस दिन से उस परिवार की हिंसा सदैव के लिए छूट गई।

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