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    21वीं शताब्दी का भारतीय सिनेमा जगत, पाइरेसी एवं अनाराष्ट्रीय फिल्मों से प्रतिस्पर्धा से जूझता हुआ


    21वीं शताब्दी का भारतीय सिनेमा जगत, पाइरेसी एवं अनाराष्ट्रीय फिल्मों से प्रतिस्पर्धा से जूझता हुआ

    21वीं शताब्दी के प्रारंभ के साथ भारतीय फ़िल्म उद्योग अपनी लोकप्रियता, कुशलता और समृद्धि के शिखर की ओर बढ़ने लगी। बड़े नगरों में तेजी से मल्टीप्लेक्स बनने लगे। लोग फिर से बड़े पर्दे की ओर आकृष्ट होने लगे। सिनेमाघर मालिकों का आर्थिक संकट समाप्त होने लगा।

    विगत कुछ वर्षों के दौरान कई बहुत अच्छी फ़िल्में बनीं- 'लगान', 'वीर जारा', 'रंग दे बसंती', 'राजनीति', 'अजब प्रेम की गजब कहानी', 'अवतार', 'ब्लैक' और 'थ्री इडियट्स'। इनमें से अधिकांश ने बॉक्स ऑफिस में भी अच्छी कमाई की। 'अवतार' और 'थ्री इडियट्स' ने तो अब तक की कमाई के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।

    पिछले दो दशकों के दौरान कुछ अत्यंत प्रतिभाशाली निर्देशकों ने भारतीय फ़िल्म उद्योग पर अपनी छाप छोड़ी आमिर खान एक अच्छे अभिनेता ही नहीं कुशल निर्देशक भी सिद्ध हुए हैं। उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्म है। राजकुमार हिरानी की 'लगे रहो मुन्ना भाई' और 'थ्री इडियट्स' अपने ढंग की अनूठी फ़िल्में हैं। प्रकाश झा की 'गंगाजल' माफिया और सरकारी अफसरों के गठजोड़ पर एक ईमानदार पुलिस अफसर के संघर्ष और विजय को शक्तिशाली ढंग से प्रकट करती है। रवि चोपड़ा ने पारिवारिक संबंधों पर 'बागवान' और 'बाबुल' बनाई। ‘गोलमाल' श्रृंखला में रोहित शेट्टी की फ़िल्में अच्छी कॉमेडी हैं।

    अभी कुछ समय पहले तक भारतीय फ़िल्मों का बजट सीमित होता था, __ एक से पांच करोड़ तक। लेकिन अब फ़िल्मों के बजट से निरंतर वृद्धि हो रही है। अब 100 करोड़ रुपये के बजट वाली फ़िल्में बनाई जा रही हैं। बड़ी बजट की कई फिल्मों के बॉक्स ऑफिस में पिट जाने से फिल्म उद्योग संकट के घेरे में है। अभिनेता-अभिनेत्री फिल्म साइन करने के करोड़ों की मांग कर रहे हैं। फ़िल्मों का बजट मर्यादा में रखने और कलाकारों की फीस नियंत्रित करने के लिए तत्काल कुछ करने की आवश्यकता है। फ़िल्म उद्योग के सुखद भविष्य के लिए यह जरूरी है कि इस क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों को फिल्म के लाभ-हानि में भागीदारी बनाया जाए।

    इस समय भारत में विश्व में सबसे अधिक फ़िल्में बनती हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार सन् 2009 में भारत में 2,961 फ़िल्में बनी थीं, जबकि अमरीका में 1,177 फिल्में बनी थीं। यद्यपि भारत में अमरीका से करीब दुगुनी फ़िल्में बनीं और इन्हीं लोगों ने फ़िल्में देखी। फिर भी अमरीका को फिल्मों से भारत से कहीं अधिक आय हुई। फ़िल्मों की गुणवत्ता, तकनीक और प्रस्तुतीकरण में भी अमरीका भारत से बहुत आगे है।

    पश्चिमी देशों की फ़िल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों को देश में उदारता के साथ प्रदर्शन की अनुमति दे दी गई है। इन देशों की अनेक फ़िल्में हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषा में डब करके दिखाई जा रही हैं। इसकी वजह से भारतीय फ़िल्मों को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय दर्शक भी अब विश्वस्तर की फ़िल्में सेट और गुणवत्ता की अपेक्षा कर रहे हैं।

    भारतीय फ़िल्म उद्योग को कॉपीराइट उल्लंघन और पाइरेसी की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है। फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही उसके प्रिंट, डीवीडी, डीवीसी बाज़ार में उपलब्ध हो जाते हैं। अनुमान है कि इससे फ़िल्म उद्योग को प्रतिवर्ष 460 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इस लूट को रोकने के लिए तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने कानून बनाए हैं। 

    भारतीय फिल्में अपने संगीत, नृत्य और गानों के कारण विश्व के अनेक देशों में देखी जाती हैं। अफ्रीका के अनेक देशों में भारतीय फ़िल्में अत्यंत लोकप्रिय हैं। भारत के पड़ोसी देशों-नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में भी भारतीय फ़िल्मों की जबरदस्त मांग है। पाकिस्तान ने सन् 1965 में भारतीय फ़िल्मों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। वर्ष 2008 के बाद उसने भारतीय फ़िल्मों के आयात पर ढील देनी शुरू की है।

    अफगानिस्तान और चीन में भी भारतीय फ़िल्में पसंद की जाती हैं। चीन ___ में 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी' और राजकूपर की 'आवारा' आज भी उत्साह से देखी जाती है। ब्रिटेन, आयरलैंड, रूस, फ्रांस, जर्मनी, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड में भारतीय फ़िल्में काफी लोकप्रिय हैं। कनाडा, अमरीका और इंग्लैंड की कुछ सिनेमाघरों में भारतीय फ़िल्मों के नियमित शो होते हैं।

    भारतीय निर्देशकों, अभिनेता-अभिनेत्रियों ने अपने उत्कृष्ट काम के कारण विश्व फिल्म उद्योग में अपने लिए विशेष स्थान बना लिया है। शेखर कपूर ने अनेक अंग्रेज़ी फ़िल्मों का निर्देशन किया है। ओमपुरी, अनिल कपूर, इरफान खान, ऐश्वर्या राय और मल्लिका शेरावत आदि ने हॉलीवुड की फ़िल्मों में अभिनय किया है। हॉलीवुड तथा अन्य देशों के फ़िल्मी कलाकारों ने भारतीय फ़िल्मों में काम करने की इच्छा प्रकट की है।।

    __'स्लमडाग मिलेनियर' यद्यपि भारतीय फ़िल्म नहीं थी क्योंकि उसका निर्माण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुआ था तथापि उसका भारतीय फ़िल्म उद्योग से घनिष्ठ संबंध था। उसे 10 में से 8 अकादमी अवार्ड मिले हैं। ए.आर. रहमान को मूल स्वरलिपि के लिए रहमान और गुलजार को संगीत रचना के लिए ऑस्कर पुरस्कार दिया गया। फ़िल्म में रहमान द्वारा प्रयुक्त जय हो... को विश्व के शब्दकोशों में स्थान मिला है। स्लमडाग में भारतीय योगदान को विश्व ने स्वीकार किया है और उसे मान्यता प्रदान की है। यह बड़ी खुशी का विषय है। इससे भविष्य में विश्व फिल्म उद्योग के साथ भारत के सहयोग के नये रास्ते खुलेंगे।

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