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    मुझसे क्षुद्र बातों के संबंध में मत पूछें - ओशो

    मुझसे क्षुद्र बातों के संबंध में मत पूछें - ओशो

    मुझसे क्षुद्र बातों के संबंध में मत पूछें - ओशो

    मुझसे क्षुद्र बातों के संबंध में मत पूछें।
    मुझसे लोग पूछते हैं,
    क्या खाएं?
    क्या न पीए?
    ये सब व्यर्थ की बातें मुझसे मत पूछें।
    आपके पास देखने की खुद की
    आंख होनी चाहिए।
    वह आपको कहेगी कि क्या खाएं
    और क्या न खाएं।
    मेरे कहने से कुछ भी न होगा।
    अगर मैं कह भी दूं कि यह मत खाएं,
    यह मत पीए,
    तो भी अगर आप अंधे हैं
    और अंधेरे से भरे हैं
    और ध्यान की क्षमता नहीं है,
    तो आप तरकीबें निकाल लेंगे।
    बुद्ध से लोगों ने पूछा कि
    हम मांसाहार करें या न करें?
    तो बुद्ध ने कहा कि हत्या करना,
    हिंसा करना बुरा है,
    तो तुम किसी पशु—पक्षी को
    मार कर मत खाना।
    तो पता है आपको,
    सारे बौद्ध मांस खाते हैं,
    लेकिन वे कहते हैं,
    हम मरे हुए का,
    अपने आप मरे हुए का खाते हैं!
    बुद्ध ने कहा,
    हिंसा पाप है,
    तुम मार कर कुछ मत खाना।
    उसमें से तरकीब निकाल ली
    कि जो गाय अपने आप ही मर गई,
    अब उसको तो खाने में कोई हर्ज नहीं।
    क्योंकि बुद्ध ने यह तो कहा नहीं
    कि अपने आप मरे हुए को मत खाना।
    तो चीन और जापान में होटलों पर,
    जैसे हिंदुस्तान में लगा रहता है,
    यहां शुद्ध घी बिकता है।
    जहां लिखा है,
    उसका मतलब ही साफ है।
    घी काफी है,
    शुद्ध होने की क्या जरूरत है?
    लेकिन शुद्ध है तो
    साफ ही है कि शुद्ध नहीं है।
    जापान और चीन में तख्ती लगी रहती है
    कि यहां मरे हुए जानवर का मांस मिलता है,
    अपने आप मरे हुए!
    इतने जानवर कैसे अपने आप मरते हैं,
    यह बड़ा मुश्किल है।
    पूरा मुल्क मांसाहार करता है।
    तरकीब है।
    तुम निकाल ही लोगे।
    तुम्हें जो करना है,
    तुम करोगे ही।
    क्योंकि तुम्हारा जो अंधेरा है,
    वहां से तुम्हारा करना निकलता है।
    उसमें बचने का कोई बहुत उपाय नहीं है।
    जैन हैं।
    तो महावीर ने कहा है कि
    किन्हीं दिनों में,
    पर्व और धर्म के दिनों में,
    तुम हरी शाक—सब्जी,
    ताजी शाक—सब्जी मत खाना।
    तो जैनी सुखा कर रख लेते हैं पहले से,
    फिर सूखी शाक—सब्जी खा लेते हैं!
    और मजे की तो हद हो गई।
    एक घर में मैं मेहमान था।
    पर्यूषण के दिन थे।
    तो वे मुझे केला देने ले आए।
    तो मैंने कहा कि आप लोग
    केला खाते हैं पर्यूषण में?
    पर उन्होंने कहा,
    लेकिन यह तो हरा नहीं है,
    पीला है; हरियाली के लिए मनाई है!
    तुम महावीर को भी धोखा दोगे।
    तुम धोखा दे ही सकते हो,
    तुम और कुछ कर सकते नहीं हो।
    तुम जैसे हो,
    वहां से तुम गलत को खोज ही लोगे,
    क्योंकि तुम गलत हो।
    अगर मैं कहूं परतंत्र यौन के पक्ष में हूं
    तो तुम उसमें तरकीबें निकालोगे।
    अगर मैं कहूं स्वतंत्र यौन के पक्ष में हूं
    तुम तत्काल उसमें तरकीबें निकालोगे।
    लेकिन तरकीब तुम्हीं निकालोगे।
    तो मैं तुमसे नहीं कहता कि
    मैं किस पक्ष में हूं किस विपक्ष में हूं।
    मैं तो तुम्हारी आंख के पक्ष में हूं।
    तुम्हारी आंख खुलनी चाहिए,
    तुम्हारा बोध बढ़ना चाहिए।
    फिर तुम्हारा बोध ही निर्धारक होगा,
    कि तुम्हें जो करना हो,
    तुम करना।
    बोधपूर्वक करना,
    जो भी तुम करो।
    होशपूर्वक करना,
    विवेकपूर्वक करना,
    तुम जो भी करो।
    तो तुम्हारे जीवन में मार्ग खुलेगा।
    मेरी बात को ठीक से समझ लेना।
    मैं किसी विस्तार में मार्ग—निर्देश देने के
    जरा भी पक्ष में नहीं हूं।
    क्योंकि सभी मार्ग—निर्देश अगर
    विस्तार में दिए जाएं तो परतंत्र करते हैं,
    क्योंकि फिर तुम उन्हें मान कर चलोगे।
    और जब भी कोई चीज परतंत्र करती है
    तो तुम उसमें से छूटने का उपाय भी निकालते हो।
    तो तुम छूटने का उपाय भी निकाल लोगे।

    !! ओशो !!

    [ साधनासूत्र ]

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