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    वास्तुशास्त्र - धन एवं समृधि के लिए कारखाना कहाँ बनाना चाहिए

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    धन एवं समृधि के लिए कारखाना कहाँ बनाना चाहिए 

    कारखाना

    कारखाने ही नहीं, उसके मालिक का मकान भी वास्तु शास्त्र के अनुरूप बनाना चाहिए। इसमें केवल मालिक का हीनहीं उसमें काम करनेवाले मजदूरों का भी श्रेय जुडा होता है। अतः कारखाने के निर्माण में सावधानी बरतना है।

        कारखाने में सारा वजन पश्चिम नैरुति तथा दक्षिण में ही रखना है। ईशान्य में कुँआ होना है। प्रहरि के निर्माण में भी सावधानी बरतना है। पूर्वी तथा उत्तरी दीवारो से पश्चिमी और दक्षिणी दीवारें मजबूत और ऊँची होना चाहिए। प्रहरी को नैरुति में उपगृह का निर्माण करने से अद्भुत परिणाम निकल सकते हैं। पिछले दशाब्द से कई मिल मालिक अपने कारखाने में अभिलषणीय सुधार करके अच्छे नतीजे पा रहे हैं। अनुभवी वास्तु शास्त्रियों के फीज की परवाह न कर, मुँह माँगे दाम देकर अपने अपने कारखानों के अन्तर्गत दोषों का निवारण कर ले रहे हैं। निचले दर्जे के वास्तु पंडितों पर भरोसा कर संपूर्ण ज्ञान रखने वाले वास्तु शास्त्रियों के सलाह से वास्तु शास्त्र का लाभ उठा रहे हैं।


        कारखाना किसी दिशा में क्यों न हो उसके दरवाजे तो उच्च में ही होना चाहिए। पूर्वीरोड वाले कारखाने का मुख्य द्वार पूर्वी ईशान्य में दक्षिणी द्वार वाली कारखाने का मुख्य द्वार पश्चिम वायुव्य में तथा उत्तर रोडवाले कारखाने का मुख्य द्वार उत्तर ईशान्य में ही होना चाहिए। कारखाने के ईशान्य में एक कुँआ अथवा गड्डा होना चाहिए। यह भी कारखाने के निर्माण के अनुरूप होना है। छोटे कारखाने के लिए एक गड्डा और बडे कारखाने के लिए एक बडा कुँआ होना है। उदाहरण के तौर पर किसी विशाल भवन के पश्चिमी तट पर एक बडा नाला और वहीं कुछ झोंपडियाँ हों, तो नाले का प्रभाव विशाल भवन पर ही पडेगा। क्यों कि उसके पूर्व में यह नाला है। वास्तु शास्त्र एक अगाध - समुद्र जैसा है। इसलिए एक अनुभवी तथा योग्य वास्तु शास्त्रि की सलाह पर अवश्य संशोधन कर लेना है। तभी हमें उत्तम परिणाम मिलेंगे। यदि कारखाने के दक्षिण, पश्चिम तथा नैरुति में ऊँचे पेड हों और उसके अलावा अच्छी वीधि दृष्टि भी हों तो अपार शुभ प्राप्त होंगे।

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