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    प्रश्न-- ओशो विज्ञान की भांति साधना के उपयोग के लिए यदि राज्य की सत्ता का उपयोग हो, तो क्या हितकर नहीं होगा?

    Question-Osho-If-the-power-of-the-state-is-used-for-the-use-of-spiritual-practice-like-science-then-will-it-not-be-beneficial


    प्रश्न--विज्ञान की भांति साधना के उपयोग के लिए यदि राज्य की सत्ता का उपयोग हो, तो क्या हितकर नहीं होगा? 

    ओशो--नहीं, इसके लिए बिलकुल उपयोगी नहीं है। विज्ञान का मामला बहुत भिन्न है। वह ऐसा है कि दो तरह से नहीं लड़ रहे हैं हम सारी दुनिया में साइंस एक है, चाहे अमेरिका ताकत लगाए, चाहे रूस। चांद पर चाहे अमरीका पहुंच गया, चाहे रूस, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आदमी चांद पर पहुंच गया। अब आदमी का ज्ञान चांद पर पहुंचने वाला हो गया। अब तो हालतें यह हुई जा रही है कि अभी रूस के वैज्ञानिक ने कहा कि अब अमेरिका और रूस के सहयोग के बिना साइंस विकसित नहीं होनेवाली है। अब कोई एक राज्य बढ़ा ही नहीं सकता, उसको इतनी बड़ी शक्ति की जरूरत पड़ गयी है। विज्ञान का मामला बिलकुल उल्टी है। अगर मुसलमान बढ़ता है; तो उससे हिंदू को नुकसान होता है। अगर ईसाई बढ़ता है, तो हिंदू और मुसलमान का नुकसान होता है। इनके विश्वास न तो वैज्ञानिक हैं, न विचार को बल देते हैं, न विचार को रोकते हैं। इसलिए सारी दुनिया के राज्यों का धर्म से छुटकारा न हो जाना चाहिए। 

            यह भी ध्यान रहे, जब तक राज्य का धर्म से छुटकारा न हो, तब तक साइंस के पास हम ठीक से खड़े न हो पाएंगे; क्योंकि धर्म औ उसका कुल कारण इतना है कि इंगलैंड ईसाई मुल्क है, आर्थोडाक्स है, और यह आर्थोडाक्सी उसकी जान लिए ले रहे हैं। रूस ने पचास साल में साइंस को इतनी गति दी जमीन पर, कि किसी दूसरे मुल्क को उतनी गति करने में पांच सौ साल लगेंगे, क्योंकि रूस धर्म से बिलकुल मुक्त हो गया है। वह जिंदगी ही खत्म कर दी है। उसकी सारी ताकत साइंस में लग गयी है। हिंदुस्तान तो इसलिए बुरी तरह पिछड़ा हुआ है साइंस में कि वह धर्मों से मुक्त नहीं हो पाया है। और नुकसान ही होगा, जब तक वह धर्मों से मुक्त न होगा।

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