शत्रु का क्या भरोसा
शत्रु का क्या भरोसा
किसी पर्वत की कन्दरा मे वहुत-सी भेडे रहती यी । एक दिन उनपर एक सियार की प्राख पड गई । वह अपनी सियारन के साथ पास के ही वन मे रहता था । भेडो को देखकर उसके मुह मे पानी भर आया । उस दिन ने वह कन्दरा के आसपास चक्कर लगाने लगा । रोज उसके हाथ एक न एक भेड लग ही जाती थी। वह उसे मारकर सियारिन के साथ प्रानन्द से खाता था । थोडे ही दिनो मे सियार-सियारिन भेडो का मास खाकर खूब मोटे हो गए।
इधर भेडो की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होने __ लगी। मोटी-ताजी भेडो मे केवल मेलमाता नाम की __ एक भेड बच रही। सियार बहुत दिनो से उसकी ताक मे था, लेकिन वह किसी तरह भी उसके पंजे मे न आती थी। एक दिन सियार ने सियारन से कहा, "देखती हो, यह मेलमाता कितनी चतुर है । यह आसानी मे पकट मे न पाएगी। अब तुम एक काम करो; इसके पास अकेली जाकर मेल-मिलाप वढायो । थोड़े दिनों मे तुम्हारी-उसकी खूब बनने लगेगी । बस, उसी मौके पर काम बनेगा । मैं तो यहां नकली मुर्दा बनकर लेट जाऊंगा और तुम विधवा का ढोंग रचकर हाहाकार करती हुई उसके पास जाना और उसके पैरों पर सिर पटक-पटककर कहना, 'हाय बडी बहिन । मेरी दुनिया उजड़ गई । मेरा भाग्य फट गया। मेरे स्वामी मुझे अकोला छोड़कर चल बसे । अब तुम्हारे सिवा इस मागिनी का कोई सहारा नहीं है । बहिनजी ! उनकी लाप पड़ी है। चलकर उसका दाह-संस्कार करवा दो। मैं तुम्हारा बडा उपकार मानूंगी।' इस तरह उगे वहकार मेरे पास ले आना। बस, पास आने ही में उनकर उसकी गर्दन पकउ लगा।" ।
निगारिन ने ऐसा ही किया। दूसरे दिन से वह गेगमाता से मेल बढ़ाने में लग गई। मौके-बेमौके वह उनके पास पहुंच जाती दोनों घंटों प्रेम मे बाते करती। धीरे धीरे दोनों में काफी मेल-जोल हो गया। तब एक दिन सियारन ने सियार का सिखाया हआ विधवा का ढोंग रचा । बहुत कहने-सुनने से मेलमाता को जाना ही पड़ा। उसने दूर से सियार को जमीन पर पडे देखा । वह मुर्दे जैसा ही लगता था, फिर भी चतुर मेलमाता ने उसका विश्वास करना ठीक न समझा । वह वही रुककर सियारिन से बोली, "वहिन, क्षमा करना; तुम्हारे पति ने मेरे वशवालो को जिस तरह से मारा है, उसे सोचकर मुझे उनका विश्वास नहीं होता। मैं उनके पास न जाऊगी।"
सियारिन रोती हुई बोली, "अरी मेरी बड़ी वहिन । क्या कहती हो । भला मरा हुआ प्राणी किसीको __ मार सकता है । अब निश्चिन्त रहो, चलो, सखी चलो। उनके शरीर को अपनी प्राख से देख लो तो वे तर जाएगे।" ___मेलमाता बोली, “सखी ! मुझे तो उनकी मरी शक्ल से डर लगता है । तुम आगे-पागे चलो तो मैं चल सकती हू।" सियारिन आगे वढी । मेलमाता सावधानी से उसके पीछे धीरे-धीरे चली। पैरो की आवाज़ मुनकर पाखण्डी सियार ने धीरे से गर्दन उठाई और पाखे खोलकर उस ओर देखा । मेलमाता इस खेल __ को तुरन्त समझ गई और पीछे से भाग निकली।
सियारिन ने दौडकर उसे रोकना चाहा, पर वह यह __ कहती हुई चली गई, “ऐसे मित्र से दूर रहने मे ही कल्याण है !"
हाथ आया शिकार सियार की जल्दबाजी के कारण जाता रहा। इसके लिए सियारिन ने सियार को बहुत बुरा-भला कहा। सियार अपनी बेवकूफी पर पछताने लगा । अन्त में सियारिन ने कहा, "जो हुआ सो हुया; मैं एक बार फिर उसे यहा तक लाऊगी, दुवारा ऐसा लडकपन मत करना ।”
सियार ने कहा, "नही, नहीं, अब ऐसी गलती न होगी। मैं बिलकुल मुर्दा बन जाऊगा, तुम एक वार फिर अपना जादू चलायो, फिर मेरी करामात देखना।"
सियारिन फिर मेलमाता के पास गई और मुह बनाकर बोली, "वहनजी, आप तो साक्षात् देवी है। हे भगवती की सगी बहन ] मेरे घर में अापके चरण पाते ही मेरे नाथ जी उठे। हमारा खोया हुआ सौभाग्य वापस मिल गया ! केसी अद्भुत महिमा है आपके चरणों की ! आपने मेरे पतिदेव को नया जीवन दे दिया । अब वे पुन. सचेत हो गए हैं, लेकिन निर्बलता के कारण अभी चल-फिर नहीं सकते और उसी तरह लेटे है । आप एक बार चली चले तो उन्हे बड़ी हिम्मत मिलेगी और वे शीघ्र ही चंगे हो जाएंगे । पतिदेव को वापस पाने की खुसी में अपने घर पर प्रापको प्रीतिभोज भी देना चाहती हू । कृपा करके अवश्य चलिए।"
मेलमाता एक ही बार मे बहुत कुछ सीख गई थी । वह सियारिन के चकमे मे दुबारा नही आई और उसीकी तरह की बाते बनाकर बोली, "बहन | मुझे यह शुभ समाचार सुनकर बडी प्रसन्नता हुई है । भगवान् तुम्हे सदा सौभाग्यवती रखे । मैं अवश्य आऊगी। लेकिन मेरे साथ कई और भी सगी-साथी रहेगे । सो, सबके भोजन का पूरा प्रवन्ध रखना।" ।
सियारिन ने पूछा, “बहनजी ! वे साथी कौन है, कितने है ?"
मेलमाता ने चार कुत्तो के नाम बताकर कहा, ये चार तो सरदार हैं, इनमे से प्रत्येक सरदार के साथ पाच-पाच सौ कुत्ते होगे । इस प्रकार दो हज़ार साथियो को लेकर मैं शाम को आऊंगी। देखना कोई त्रुटि न हो, नहो तो सव बडा उत्पात करेगे।"
इसे सुनते ही सियारिन के देवता कूच कर गए । उसने सोचा कि इस वला को तो किसी तरह दूर से ही टालना अच्छा है । वह फिर वात बनाकर वोली, "बडी वहन । मैं सोचती हू कि तुम यहा से चलोगी तो घर सूना हो जाएगा। इसलिए अभी आज कष्ट न करो। मैं तो ग्राती-जाती रहूगी ही । कोई बात होगी तो बताऊगी, तब चलना । अभी तो तुम्हारी कृपा से वे जी उठे है और अच्छे हो रहे है । तुम यही उनके स्वास्थ्य के लिए शुभकामना करो । यही बहुत है ।
यह कहकर सियारिन भागती हुई घर आई। वहां सियार साँस रोके पडा था। सियारिन ने उसे धक्के देकर कहा, "सुनते हो जी ! मेलमाता ने कुत्तो की पूरी सेना बटोर ली है। पूरे दो हजार कुत्तो को लेकर वह किनी भी समय धावा बोल देगी। अब तो वह घर भी देख गई है।"
सियार चीखकर उठ बैठा और बोला, "हाय वाप ! तब क्या होगा ?"
सियारिन ने कहा, "अव जल्दी से जल्दी यहा से कूच करो । इस मांद को ही नहीं, इस जंगल को भी छोड देने में ही भलाई है। वह बिना बदला लिए न होगी।
दोनों उगी क्षण वहां से दुम दवाकर दूर भाग ना और फिर लॉटकर उधर नहीं पाए ।

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