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    ज्योतिष से जानिए बुद्धि-विवेक के ग्रह बुद्ध के स्वभाव के बारे में

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    ज्योतिष से जानिए बुद्धि-विवेक के ग्रह बुद्ध के स्वभाव के बारे में

    बुध को चंद्र का पुत्र कहा गया है। पुराणों में भी बुध को चन्द्र (चन्द्रमा) की पत्नी रोहिणी का पुत्र माना जाता है। प्रजापति दक्ष की जिन सत्ताइस कन्याओं का विवाह चन्द्र के साथ हुआ था, रोहिणी उन्हीं में से एक है; यह सभी
    ग्रहों में सबसे छोटा है। कहीं-कहीं पर बुध को बृहस्पति का दूत भी बताया गया है। बुध ग्रह जिस समय सूर्य की गति का उल्लंघन करते हुए राशि संचरण करता है तो आंधी, तूफान, वर्षा अथवा सूखे की सूचना देता है।
    बुध ग्रह मुख्य रूप से व्यवसाय का प्रतिनिधि है, बुद्धि-विवेक और वाणिज्य का नियामक है। यह जाति से शूद्र तथा मस्तिष्क से वणिक् है। बुध ग्रह को अकेले होने की अवस्था में शुभ तथा पाप ग्रह से युक्त होने पर
    शक्र, राहु और केतु इसके अच्छे मित्र हैं, चंद्रमा को यह अपना शत्रु मानता है तथा मंगल और बृहस्पति न उसके मित्र हैं न शत्रु; अर्थात् यह दोनों बुध से समभाव रखते हैं।

    बुध कन्या राशि के १५ अंश तक परम उच्चस्थ तथा मीन राशि में १५ अंश तक परम नीच का माना जाता है। सूर्य और चन्द्र की भाँति बुध सदैव मार्गी नहीं रहता, अपितु समय-समय पर मार्गी, वक्री तथा अस्त होता रहता है।

    बुध ग्रह यदि शुभ ग्रहों से युत हो तो शुभ फल और पाप ग्रह से युत हो तो अशुभ फल देता है। बुध के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए उससे संबंधित रत्न पन्ना धारण करना चाहिए।

    बुध जातक की जन्मकुंडली में जिस घर में बैठा हो, वहाँ से तीसरे और दसवें घर को एक चरण दृष्टि से, पांचवें और नौवें घर को दो चरण दृष्टि से तथा सातवें घर को पूर्ण दृष्टि से देखता है। मनुष्य के शरीर में कंधे ११४ से लेकर गरदन तक इसका नियंत्रण रहता है। यह उत्तर दिशा का स्वामा, नपुंसक तथा त्रिदोषकारी है। ये श्याम तथा हरे रंग वाला, बहुभाषी, कृश शरीर, रजोगुणी, पृथ्वी तत्त्व वाला, स्पष्टवादी, पित्त व कफ प्रकृति वाला, शूद्र जाति का है। यह अपने स्थान से सातवें भाव (घर) को पूरी दृष्टि से देखता है। इसकी विंशोत्तरी महादशा १७ वर्ष की मानी गई है। यह दशा जातक के लिए भाग्यवर्धक बनती है।

    विभिन्न स्थितियों के अनुसार बुध ग्रह मुनि, वेद-पुराण, ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन, चाचा, साक्षी, राज्य, व्यापार, वैद्यक, कुष्ठ, संग्रहणी आदि रोगों का कारक है। उच्च, बलवान् या स्वराशिस्थ बुध की दशा में जातक को बहुत लाभ होता है। पुत्रों से उसे विशेष सुख मिलता है और पुत्र की कीर्ति से वह सम्मानित होता है।

    बुध नीच और हानि राशि में हो तो जातक को कफ, वात, पित्त आदि रोगों से पीड़ित करता है। धनहानि के साथ-साथ मानसिक चिन्ता से भी व्यथित होता है एवं कपटपूर्ण कार्यों में लिप्त होने को विवश होता है।

    बलवान् बुध वर्षेश (वर्ष का स्वामी या मालिक) हो तो जातक के लिए श्रेष्ठ लाभकारी होता है। उसकी बुद्धि का विकास होता है। कठिन परीक्षा में भी वो आसानी से सफल हो जाता है। बलवान् बुध उच्च प्रशासनिक सेवाओं की भर्ती परीक्षाओं में भी सफलता प्राप्त करता है। कलाओं में भी वो निपुणता प्राप्त करता है। लेखक हो तो अपनी लेखनी के द्वारा सम्मान प्राप्त करता है। राज्यों में भी जातक को अपनी कला के द्वारा सम्मान मिलता है और उसकी आय के कितने ही स्रोत बन जाते हैं।

    यदि किसी जातक के वर्ष में मध्यबली बुध वर्षेश हो तो वो व्यापारिक कार्यों में सफलता पाता है। मित्रों में सम्मान प्राप्त करता है और विद्या, परीक्षा आदि कार्यों में निपुणता प्राप्त कर यश और लाभ का भागी बनाता है। हीनबली बुध वर्षेश होने पर जातक अपने धर्म से गिर जाता है। हर समय उन्मत्त अवस्था में घूमता रहता है और कई प्रकार के खर्चों से उसकी संचित निधि समाप्त हो जाती है। हीनबली बुध पुत्र की मृत्यु का योग भी करता है अथवा संतान पेट में ही मर जाती है। ऐसी दशा में जातक दुराचरण और तिरस्कार आदि फल प्राप्त करता है। 

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