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    ओशो पत्र

    "ओशो पत्र-पुष्पम्"

    "ओशो पत्र-पुष्पम्"

    प्यारी मौनू,
    प्रेम !
            बुद्ध अक्सर कहते थे एक कथा.
    वह मनुष्य की ही कथा है.
    वह कथा पूरे संसार की ही कथा है.
    कहते थे वे : एक यात्री किसी पर्वतीय
    निर्जन में पीछा करते एक पागल हाथी से
    बचने को भाग रहा है.
          निश्चय ही जीवन और मृत्यु का सवाल
    है--उसके लिए और वह पूरी शक्ति लगाकर
    दौड़ता है और पहुँच जाता है, एक एेसी
    चट्टान के निकट, जिसके आगे कि भयंकर
    गड्ढा है और जिस पर कि मार्ग भी समाप्त
    होता है और पीछे लौटना संभव नहीं है,
    क्योंकि हाथी अभी भी पीछे चला आ रहा
    है.
          मरता क्या न करता !
    वह कोई और उपाय न देख एक लता
    को पकड़कर खाई में लटक जाता है.
    लता कमजोर है और किसी भी क्षण
    टूट सकती है.
          वह नीचे झुक कर खाई में देखता है तो
    एक सिंह मुँह बाये खड़ा है.
    और, हाथी ऊपर चिंघाड़ रहा है.
    और तभी वह देखता है कि दो चूहे
    लता की जड़ों को कुतर रहे हैं---दिन और
    रात की भाँति; एक उनमें सफेद है और एक
    काला है !
          उन चूहों की गति तेज है और साफ है
    कि वे शीघ्र ही अपना कार्य पूरा कर लेंगे.
    मौत अब जैसे सुनिश्चित है---आह !
    लेकिन तभी चट्टान के किनारे खड़े एक बृक्ष
    पर एक मधुछत्ता दिखायी पड़ता है.
    उस मधुछत्ते से बूँद-बूँद मधु ठीक
    उसके ऊपर टपक रहा है.
    जैसे बूँद-बूँद सुख.
    वह मुँह खोलकर मधु की बूँद का
    स्वाद लेता है.
    कितना मधुर है मधु.
    कैसी मिठास है मधु में.
    और मधु-मिठास के उस स्वाद में मौत
    का साकार रूप वह पागल हाथी बिलकुल
    ही भूल जाता है-----उसकी चट्टानों को
    कँपाती चिंघाड़े भी सुनायी नहीं पड़ती हैं
    और न हीं स्मृति रहती है---नीचे मुँह बाये
    खड़े सिंह की और एकमात्र सहारे को
    काटते हुए चूहे भी खो जाते हैं.
    सत्य जैसे खो जाता है स्वप्न में.
    एेसा ही संसार है.
    एेसा ही संसार है.
    एेसा ही संसार है.
    {____________}
    रजनीश के प्रणाम
    १५-३-१९७१
    [प्रति : मा योग क्रांति, जबलपुर

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