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    ध्यान विधि। अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियों में- ओशो

    ध्यान विधि। अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियों में- ओशो

    ध्यान विधि। अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियों में- ओशो 

    ध्यान विधि। 

     

    अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियों में।

    मंत्र की तरह तुम्हारे नाम का उपयोग बहुत आसानी से किया जा सकता है। यह बहुत सहयोगी होगा, क्योंकि तुम्हारा नाम तुम्हारे अचेतन में बहुत गहरे उतर चुका है। दूसरी कोई भी चीज अचेतन की उस गहराई को नहीं छूती है। यहां हम इतने लोग बैठे हैं। यदि हम सभी सो जाएं और कोई बाहर से आकर राम को आवाज दे तो उस व्यक्ति के सिवाय जिसका नाम राम है, कोई भी उसे नहीं सुनेगा। राम उसे सुन लेगा, सिर्फ राम की नींद में उससे बाधा पहुंचेगी। दूसरे किसी को भी राम की आवाज नहीं देगी।
    लेकिन यही एक आदमी क्यों सुनता है? कारण यह है कि यह नाम उसके गहरे अचेतन में उतर गया है। अब वह चेतन नहीं है, अचेतन बन गया है। तुम्हारा नाम तुम्हारे बहुत भीतर प्रवेश कर गया है। तुम्हारे नाम के साथ एक बहुत सुंदर घटना घटती है। तुम कभी तक अपने को अपने नाम से नहीं पुकारते हो। सदा दूसरे तुम्हारा नाम पुकारते हैं। तुम अपना नाम कभी नहीं लेते, सदा दूसरे लेते हैं।
    मैंने सुना है कि पहले महायुद्ध में अमेरिका में पहली बार राशन लागू किया गया। थॉमस एडीसन महान वैज्ञानिक था, लेकिन क्योंकि गरीब था इसलिए उसे भी अपने राशन कार्ड के लिए कतार में खड़ा होना पड़ा। और वह इतना बड़ा आदमी था कि कोई उसके सामने उसका नाम नहीं लेता था। और उसे खुद कभी अपना नाम लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी। और दूसरे लोग उसे इतना आदर करते थे कि उसे सदा प्रोफेसर कहकर पुकारते थे। तो एडीसन को अपना नाम भूल गया।
    वह क्यू में खड़ा था। और जब उसका नाम पुकारा गया तो वह ज्यों का त्यों चुप खड़ा ताकता रहा। क्यू में खड़े दूसरे व्यक्ति ने, जो एडीसन का पड़ोसी था, उससे कहा कि आप चुप क्यों खड़े हैं! आपका नाम पुकारा जा रहा है। तब एडीसन को होश आया। और उसने कहा कि मुझे तो कोई भी एडीसन कहकर नहीं पुकारता है, सब मुझे प्रोफेसर कहते हैं। फिर मैं कैसे सुनता? अपना नाम सुने हुए मुझे बहुत समय हो गया।
    तुम कभी अपना नाम नहीं लेते हो। दूसरे तुम्हारा नाम लेते हैं, तुम उसे दूसरों के मुंह से सुनते भर हो। लेकिन अपना नाम अचेतन में गहरा उतर जाता है—बहुत गहरा। वह तीर की तरह अचेतन में छिद जाता है। इसलिए अगर तुम अपने ही नाम का उपयोग करो तो वह मंत्र बन जाएगा। और दो कारणों से अपना नाम सहयोगी होता है।
    एक कि जब तुम अपना नाम लेते हो—मान लो कि तुम्हारा नाम राम है और तुम राम—राम कहे जाते हो—तो कभी तुम्हें .अचानक महसूस होगा कि मैं किसी दूसरे का नाम ले रहा हूं कि यह मेरा नाम नहीं है! और अगर तुम यह भी समझो कि यह मेरा ही नाम है तो भी तुम्हें ऐसा लगेगा कि मेरे भीतर कोई दूसरा व्यक्ति है जो इस नाम का उपयोग कर रहा है। यह नाम शरीर का हो सकता है, मन का हो सकता है, लेकिन जो राम—राम कह रहा है वह साक्षी है।
    तुमने दूसरों के नाम पुकारे हैं। इसलिए जब तुम अपना ही नाम लेते हो तो तुम्हें ऐसा लगता है कि यह नाम किसी और का है, मेरा नहीं। और यह घटना बहुत कुछ बताती है। तुम अपने ही नाम के साक्षी हो सकते हो। और इस नाम के साथ तुम्हारा समस्त जीवन जुड़ा है। नाम से पृथक होते ही तुम अपने पूरे जीवन से पृथक हो जाते हो। और यह नाम तुम्हारे गहरे अचेतन में चला गया है, क्योंकि तुम्हारे जन्म से ही लोग तुम्हें इस नाम से पुकारते हैं। तुम सदा—सदा इसे सुनते रहे हो। तो इस नाम का उपयोग करो। इस नाम के साथ तुम उन गहराइयों को छू लोगे जहां तक यह नाम प्रवेश कर गया है।
    पुराने दिनों में हम सबको परमात्मा के नाम दिया करते थे, कोई राम कहलाता था, कोई नारायण कहलाता था, कोई कृष्ण कहलाता था, कोई विष्णु कहलाता था। कहते हैं कि मुसलमानों के सभी नाम परमात्मा के नाम हैं। और पूरी धरती पर यही रिवाज था कि परमात्मा के नाम के आधार पर हम लोगों के नाम रखते थे। और इसके पीछे अच्छे कारण थे।
    एक कारण तो यही विधि था। अगर तुम अपने नाम को मंत्र की तरह उपयोग करते हो तो इसके दोहरे लाभ हो सकते हैं। एक तो यह तुम्हारा अपना नाम होगा, जिसको तुमने इतनी बार सुना है, जीवनभर सुना है और जो तुम्हारे अचेतन में प्रवेश कर गया है। फिर यही परमात्मा का नाम भी है। और जब तुम उसको दोहराओगे तो कभी अचानक तुम्हें बोध होगा कि यह नाम मुझसे पृथक है। और फिर धीरे— धीरे उस नाम की अलग पवित्रता निर्मित होगी, महिमा निर्मित होगी। किसी दिन तुम्हें स्मरण होगा कि यह तो परमात्मा का नाम है। तब तुम्हारा नाम मंत्र बन गया। तो इसका उपयोग करो। यह बहुत ही अच्छा है।
    तुम अपने नाम के साथ कई प्रयोग कर सकते हो। अगर तुम सुबह पांच बजे जागना चाहते हो तो तुम्हारे नाम से बढ़कर कोई अलार्म घड़ी सही काम नहीं देगी। वह ठीक तुम्हें पांच बजे जगा देगा। बस अपने भीतर तीन बार कहो : राम, तुम्हें ठीक पांच बजे जाग जाना है। तीन बार कहकर तुरंत सो जाओ। तुम पांच बजे जाग जाओगे, क्योंकि तुम्हारा नाम राम तुम्हारे गहन अचेतन में बसा है। अपना ही नाम लेकर अपने को कहो कि पांच बजे मुझे जगा देना। और कोई तुम्हें जगा देगा। अगर तुम इस अभ्यास को जारी रख सको तो तुम पाओगे कि ठीक पांच बजे कोई तुम्हें पुकार कर कहता है : राम, जागो! यह तुम्हारा अचेतन तुम्हें पुकारता है। यह विधि कहती है’अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो, और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियों में।’
    तुम्हारा नाम सभी नामों के लिए द्वार बन जाता है। लेकिन ध्वनि में प्रवेश करो। पहले तुम जब राम—राम जपते हो तो वह शब्द भर है। लेकिन अगर जप सतत जारी रहता है तो उसका अर्थ कुछ और हो जाता है।
    तुमने बाल्मीकि की कथा सुनी होगी। उन्हें यही राम मंत्र दिया गया था। लेकिन बाल्मीकि अनपढ़ आदमी थे—सीधे—सादे, बच्चे जैसे निर्दोष। उन्होंने राम—राम जपना शुरू किया। लेकिन इतना अधिक जप किया कि वे भूल गए और राम की जगह उलटा मरा—मरा कहने लगे। वे राम—राम को इतनी तेजी से जपते थे कि वह मरा—मरा बन गया। और मरा—मरा कहकर ही वे पहुंच गए।
    तुम भी अगर अपने भीतर अपने नाम का जाप तेजी से करो तो वह शब्द न रहकर ध्वनि में बदल जाएगा। तब वह एक अर्थहीन ध्वनि होगी। और तब राम और मरा में कोई भेद नहीं रहेगा। राम कहो या मरा, कोई फर्क नहीं पड़ता। वे अब शब्द नहीं रहे, वे बस ध्वनि हैं। और ध्वनि असली चीज है।
    तो अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो, उसके अर्थ को भूल जाओ; सिर्फ ध्वनि में प्रवेश करो। अर्थ मन की चीज है, ध्वनि शरीर की चीज है। अर्थ सिर में रहता है, ध्वनि सारे शरीर में फैल जाती है। अर्थ को भूल ही जाओ, उसे एक अर्थहीन ध्वनि की तरह जपो। और इस ध्वनि के जरिए तुम सभी ध्वनियों में प्रवेश पा जाओगे। यह ध्वनि सब ध्वनियों के लिए द्वार बन जाएगी। सब ध्वनियों का अर्थ है जो सब है—सारा अस्तित्व।
    भारतीय अंतस—अनुसंधान का यह एक बुनियादी सूत्र है कि आस्‍तित्‍व को मूलभूत इकाई ध्वनि है, विद्युत नहीं। आधुनिक विज्ञान कहता है कि अस्तित्व की मूलभूत इकाई विद्युत है, ध्‍वनि नहीं। लेकिन वे यह भी मानते है कि ध्वनि भी एक तरह की विद्युत है। भारतीय सदा कहते आए हैं कि विद्युत ध्वनि का ही एक रूप है। तुमने सुना होगा कि किसी विशेष राग के द्वारा आग पैदा की जा सकती है। यह संभव है। क्योंकि भारतीय धारणा यह है कि समस्त विद्युत का आधार ध्वनि है। इसलिए अगर ध्वनि को एक विशेष ढंग से छेड़ा जाए, किसी खास राग में गाया जाए तो विद्युत या आग पैदा हो सकती है।
    लंबे पुलों पर फौज की टुकड़ियों को लयबद्ध शैली में चलने की मनाही है, क्योंकि कई बार ऐसा हुआ है कि उनके लयबद्ध कदम पड़ने के कारण पुल टूट गए हैं। ऐसा उनके भार के कारण नहीं, ध्वनि के कारण होता है। अगर सिपाही लयबद्ध शैली में चलेंगे तो उनके लयबद्ध कदमों की विशेष ध्वनि के कारण पुल टूट जाएगा। वे सिपाही यदि सामान्य ढंग से निकलें तो पुल को कुछ नहीं होगा।
    पुराने यहूदी इतिहास में उल्लेख है कि जेरीको शहर ऐसी विशाल दीवारों से सुरक्षित था कि उन्हें बंदूकों से तोड़ना असंभव था। लेकिन वे ही दीवारें एक विशेष ध्वनि के द्वारा तोड़ डाली गईं। उन दीवारों के टूटने का राज ध्वनि में छिपा है। दीवारों के सामने अगर उस ध्वनि को पैदा किया जाए तो दीवारें टूट जाएंगी। तुमने अली बाबा की कहानी सुनी होगी, उसमें भी एक खास ध्वनि बोलकर चट्टान हटाई जाती है।
    वे प्रतीक हैं। वे सच हों या नहीं, एक बात निश्चित है कि अगर तुम किसी ध्वनि का इस भांति सतत अभ्यास करते रहो कि उसका अर्थ मिट जाए, तुम्हारा मन विलीन हो जाए, तो तुम्हारे हृदय पर पड़ी चट्टान हट जाएगी।
    आज इतना ही।

    - ओशो

    तंत्र सूत्र भाग 2

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