• Latest Posts

    क्या संबंध है सेक्स और धन में - ओशो


    क्या संबंध है सेक्स और धन में- ओशो


           संबंध है। धन में शक्ति है, इसलिए धन का प्रयोग कई तरह से किया जा सकता है। धन से सेक्स खरीदा जा सकता है और सदियों से यह होता आ रहा है। राजाओं के पास हजारों पत्नियाँ हुआ करती थीं। बीसवीं सदी में ही केवल तीस-चालीस साल पहले हैदराबाद के निजाम की पाँच सौ पत्नियाँ थीं।

          कहा जाता है कि कृष्ण के पास सोलह हजार रानियाँ हुआ करती थीं। मैं सोचा करता हूँ कि यह कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है परंतु यदि चालीस साल पहले हैदराबाद के निजाम के पास पाँच सौ रानियाँ हो सकती थीं, तो यह कुछ ज्यादा नहीं, केवल बत्तीस गुना ही तो अधिक हुई। यह संभव लगता है क्योंकि यदि आप पाँच सौ पत्नियों को रखने की क्षमता रख सकते हो तो सोलह हजार की क्यों नहीं?

          संसारभर में राजाओं ने यही किया। स्त्रियों को भेड़-बकरियों की तरह इस्तेमाल किया गया। बड़े-बड़े राजाओं के महलों में स्त्रियों को गिनती के हिसाब से पुकारा जाता था। अब इतने सारे नाम याद रखने तो बहुत कठिन थे। इसलिए राजा अपने नौकरों को ऐसे ही कहता था, 'चार सौ एक नंबर को ले आओ।' क्योंकि पाँच सौ नामों को कैसे याद रखा जा सकता है। इसलिए नंबर ही होते थे, जैसे सिपाहियों के नंबर हुआ करते हैं उन्हें नामों से नहीं गिनती के हिसाब से पुकारा जाता है। और इससे काफी फर्क पड़ता है। क्योंकि नंबर तो गणित में होते हैं और नंबर साँस नहीं लेते, नंबरों के दिल भी नहीं होते, न ही नंबरों की कोई आत्मा होती है।

         जब युद्ध में किसी सिपाही की मौत होती है तो नोटिस बोर्ड पर केवल ऐसे लिखा जाता है, 'नंबर पंद्रह की मौत हो गई है।' अब पंद्रह नंबर की मौत होना एक बात है यदि उस सिपाही का नाम लिखा जाता है तो बात एकदम बदल जाती है। तब उस नाम के व्यक्ति की एक पत्नी भी है जो विधवा हो गई। मरने वाले व्यक्ति के बच्चे भी हैं जो अनाथ हो गए। हो सकता है कि वह व्यक्ति अपने बूढ़े माँ-बाप का इकलौता सहारा हो। एक परिवार टूट जाता है। एक घर में अँधेरा छा जाता है परंतु जब कोई पंद्रह मरता है तो नंबर पंद्रह की न कोई पत्नी होती है, न बच्चे और न ही कोई उसके बूढ़े माँ-बाप हैं। नंबर पंद्रह केवल नंबर पंद्रह है बस और कुछ नहीं। नंबरों के जाने पर कुछ अफसोस नहीं करता। नंबर तो बदलते रहते हैं।

          इसी तरह पत्नियों के भी केवल नंबर ही हुआ करते थे- और यह संख्या कितनी है, वह इस बात पर निर्भर था कि आपके पास कितना धन है। वास्तव में पुराने जमाने में इसी बात से आपके धन का पता लगता था कि आपके पास स्त्रियों की गिनती है। धनी का यही मापदंड हुआ करता था। सदियों से धन द्वारा स्त्रियों का शोषण होता आ रहा है। सारी दुनिया में वेश्यावृत्ति द्वारा दुःख भोगे गए हैं। मनुष्यता का इससे अधिक अपमान क्या होगा। वेश्या के रूप में स्त्री को यंत्रवत बना दिया गया है, जिसे तुम पैसों से खरीद सकते हो।

          लेकिन इसे पूर्णरूप से जान लिया जाए कि आप लोगों की पत्नियाँ भी इससे कुछ भिन्न नहीं हैं। एक वेश्या को तुम टैक्सी की तरह इस्तेमाल करते हो, और पत्नी को अपनी कार की तरह, हाँ यह आपके पास स्थायी व्यवस्था है। अमीर लोग अपने धन के बलबूते पर ज्यादा कारें रख सकते हैं।

          मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसके पास तीन सौ पैंसठ कारें थीं और एक कार तो सोने की थी। धन में शक्ति है क्योंकि धन से कुछ भी खरीदा जा सकता है। धन और सेक्स में अवश्य संबंध है।

          एक बात और समझने जैसी है, जो सेक्स का दमन करता है वह अपनी ऊर्जा धन कमाने में खर्च करने लग जाता है क्योंकि धन सेक्स की जगह ले लेता है। धन ही उसका प्रेम बन जाता है, धन के लोभी को गौर से देखना- सौ रुपए के नोट को ऐसे छूता है जैसे उसकी प्रेमिका हो और जब सोने की तरफ देखता है तो उसकी आँखें कितनी रोमांटिक हो जाती हैं... बड़े-बड़े कवि भी उसके सामने फीके पड़ जाते हैं। धन ही उसकी प्रेमिका होती है। वह धन की पूजा करता है, धन यानी देवी। भारत में धन की पूजा होती है, दीवाली के दिन थाली में रुपए रखकर पूजते हैं। बुद्धिमान लोग भी यह मूर्खता करते देखे गए हैं।

          मनुष्य के पास एक ही ऊर्जा होती है- काम ऊर्जा। तुम्हारे पास कोई और तरह की ऊर्जाएँ नहीं हैं। तुम जीवन के हर कार्य में इसी काम ऊर्जा को खर्च करते हो। यह ऊर्जा बहुत प्रबल होती है - वेगवान।

    मनुष्य धन की दौड़ में लगा रहता है- इस आशा से कि अधिक धन कमाकर वह सुंदर से सुंदर स्त्री-पुरुष के साथ सेक्स करने में सक्षम हो सकता है- उसे विविधता मिलेगी और चुनाव की स्वतंत्रता भी। लेकिन वह व्यक्ति जिसकी काम ऊर्जा परिवर्तित होकर ऊपर की ओर बहना शुरू हो गई है, वह धन के पीछे नहीं दौड़ेगा। तरह-तरह की वासनाओं से मुक्त हो जाएगा, वह प्रसिद्धि के पीछे नहीं भागेगा। जैसे ही काम ऊर्जा निम्न तलों से ऊपर उठ जाती है, जैसे ही काम ऊर्जा प्रेम, प्रार्थना और ध्यान में परिवर्तित हो जाती है, तब हम क्षुद्र चीजों की ओर भागना बंद कर देते हैं।

          याद रखो कि मैं न तो सेक्स के विरोध में हूँ और न धन के, हमेशा स्मरण रखो। परंतु मैं चाहता हूँ तुम इन दोनों के पार चले जाओ। इन्हें सीढ़ी बना डालो।

     - ओशो 

    No comments