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    अप्रासंगिक हास्य

     

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    अप्रासंगिक हास्य


    आगरा के साहित्यकार अमृत लाल चतुर्वेदी के पड़ोस में एक अनपढ़ व्यक्ति रहता था जो गाहे-बगाहे अपने परिवार के पत्रों को पढ़वाने के लिए उनके पास आता रहता था. उस अनपढ़ के परिवार का एक सदस्य झांसी में रहता था और थोड़ा पढ़ा लिखा था. उसे तुकबंदी की भयंकर आदत थी. पत्र भी वह तुकबंदी में ही लिखता था.

    एक बार उसी व्यक्ति का लिखा पोस्टकार्ड लेकर वह अनपढ़ व्यक्ति पत्र पढ़वाने चतुर्वेदी जी के पास पहुँचा. पत्र में दोहा लिखा था -

    सिद्धि श्री झांसी लिखी राम-राम प्रिय भ्रात ।

    अत्र कुशलं तत्रास्तु, भैया मरि गए रात ।।

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