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    नवग्रह शांति फल

    navagrah shaanti phal


    नवग्रह शांति फल 

    तीरथराज प्रयाग सुपासा, बसै राम के सुन्दर दासा। 

    ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, दुर्वासाश्रम जन दुख हारी। 

    नव-ग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, जन तन कष्ट उतारण सेतू। 

    जो नित पाठ करै चित लावै, सब सुख भोगि परम पद पावै।

    ॥दोहा॥ 

    धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार। 

    चित नव मंगल मोद गृह, जगत जनन सुखद्वार॥ 

    यह चालीसा नवोग्रह विरचित सुन्दरदास। 

    पढ़त प्रेम युत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास॥

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