पच्चीस वर्षों से शादी शुदा
पच्चीस वर्षों से शादी शुदा
एक सभागार में अखंड रामायण का पाठ किया जा रहा था. शाम का समय था – श्रद्धालुओं की भीड़ लगी थी और सभागार में तिल रखने को जगह नहीं थी.
पाठ चल रहा था
सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू।
ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू।।
पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू।
पुलक गात उर अधिक उछाहू।।
फ़िल्मी धुनों पर रामायण की पाठों के बीच अचानक एक घनघोर गर्जना हुई और एक चमत्कार हो गया.
एक राक्षस प्रकट हो गया था वहाँ. लपलपाती, आग उगलती जिव्हा और खून से सने उसके लंबे नुकीले दाँत उसे भयानक बना रहे थे.
सभागार में भगदड़ मच गई.
जिसे जैसी जगह दिखी भाग निकला. सेकेण्डों में सभागार खाली हो गया. पुजारी जिसके निर्देशन में पाठ किया जा रहा था. भागने वालों में प्रथम था.
परंतु एक व्यक्ति निर्विकार बैठा हुआ था.
राक्षस गरजते हुए उसके पास पहुंचा और पूछा – तुम जानते नहीं मैं कौन हूँ?
उस व्यक्ति ने कहा – हाँ मैं जानता हूँ – तुम कुम्भीपाक नर्क के राक्षस हो.
राक्षस ने गरजते हुए, आग उगलते हुए फिर पूछा - तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता?
उस व्यक्ति का जवाब था – नहीं, बिलकुल नहीं.
राक्षस का गुस्सा आसमान पर था – देवता भी तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाएंगे मूर्ख! ये बता तुझे मेरा भय क्यों नहीं है?
उस व्यक्ति ने उसी शांति से जवाब दिया - मैं पिछले पच्चीस वर्षों से शादी शुदा हूँ
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