दैवीय चिह्न
दैवीय चिह्न
एक पुजारी और एक पादरी की कारें आपस में भिड़ गईं, और जरा जोरदार से भिड़ीं. दोनों ही कारें बुरी तरह से टूटफूट गईं, परंतु उतने ही आश्चर्यजनक रूप से न तो पुजारी और न पादरी को कोई खास चोटें आईं.
जब वे दोनों अपनी अपनी कारों से बाहर निकले तो पुजारी ने पादरी के लिबास को देखा और कहा – तो तुम पादरी हो! वाह! मैं भी पुजारी हूं. हमारी कारें कैसी टूटफूट गईं हैं, परंतु सौभाग्य से हमें कोई खास चोटें नहीं पहुँची. यह ईश्वर की बड़ी कृपा है और उसका यह संदेश हम दोनों के लिए है कि हम आपस में दोस्त बन जाएँ और बाकी की जिंदगी प्यार और शांति से दोस्त के रूप में साथ-साथ गुजारें.
पादरी ने कहा – हाँ मैं तुम्हारी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ. यह तो ईश्वरीय इच्छा ही प्रतीत होती है.
पादरी ने आगे कहा - और जरा इसे देखो. एक और चमत्कार. मेरी कार पूरी तरह से बरबाद हो गई है परंतु यह ब्लैक लेबल व्हिस्की की बोतल पूरी तरह ठीक ठाक है. इसमें एक खरोंच भी नहीं आई है. अवश्य ही ईश्वर चाहता है कि हम अपनी इस नई दोस्ती का जश्न व्हिस्की पीकर मनाएँ. फिर उसने बोतल खोली और पुजारी की ओर बढ़ाई.
पुजारी ने हाथ जोड़ लिए और कहा - राम! राम!! मैंने जिंदगी में कभी भी शाकाहार और दूध घी के अलावा कुछ नहीं खाया पिया. मेरा धर्म भ्रष्ट मत करो.
परंतु पादरी ने पुजारी को फिर समझाया – देखो यदि तुम ईश्वरीय संदेश को नहीं मानोगे तो भगवान को सचमुच अप्रसन्न कर दोगे.
आखिर में पुजारी को लगा कि सचमुच ईश्वर की कृपा से उसका पुनर्जन्म हुआ है और पादरी की बातों में दम है. उसने बोतल ली और शराब की एक घुट भरी. उसका मुँह कड़वा हो गया. जैसे तैसे उसने पहला चूंट भरा और बोतल पादरी को वापस किया.
पादरी ने कहा – देखो तुमने चूँकि पहला चूँट भरा है, इसलिए अब तुम इस बोतल का आधा हिस्सा प्रसाद के रूप में प्राप्त करो. बाकी का हिस्सा फिर मैं पी लूंगा.
प्रतिवाद करते हुए पुजारी ने दूसरा घूट भरा. तीसरा घुट भरते तक उसे आनंद आने लगा था. देखते ही देखते बोतल में सिर्फ दो घूट शराब बाकी बची.
पुजारी नशे में बोला - अरे! मैंने सारा ही प्रसाद अकेले ले लिया. राम! राम!! ईश्वर तो बड़ा कुपित होगा. ये दो घुट बचा है. इस प्रसाद को तो तुम भी अवश्य लो.
पादरी ने बोतल पुजारी के हाथों से ली और उसका ढक्कन बंद करते हुए बोला- हाँ, अभी लेता हूँ प्रसाद. जरा पुलिस को तो आ जाने दो.
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