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    एक विचार को दूसरे पर टिकने न दो

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    एक विचार को दूसरे पर टिकने न दो

    महात्मा ईसा कहीं जा रहे थे कि मार्ग में उन्होंने अपने मैथ्यू नामक शिष्य को देखा। उसके पिता की मृत्यु हो गई थी और वह उसे रो-रोकर दफन कर रहा था।

    मैथ्यू ने जैसे ही ईसा को देखा वैसे ही दौड़कर उनके पास आया और आस्तीन चूमकर तुरंत ही अपने पिता के शव की ओर लौट पड़ा।

    ईसा ने समझा कि इसकी ममता नहीं मरी। अत: उन्होंने मैथ्यू को पुकार कर अपने पास बुलाया और उसे आज्ञा दी-"जिसकी मृत्यु हो गई वह भूत का साथी हुआ, तू उसकी लाश से मोह कर वर्तमान से दूर क्यों होना चाहता है?" 

    जब तक मैथ्यू कुछ समझे तब तक ईसा फिर बोल पड़े"समय बड़ा बलवान है; इसने अनेक लाशों को यत्नपूर्वक दफनाया है। उसके लिए तेरे पिता की लाश का दफनाना कुछ कठिन कार्य नहीं है।"

    मैथ्यू इस असमंजस में था कि वह इस समय क्या करे? तभी उसने ईसा की स्पष्ट आज्ञा सुनी-"भूत को देखता रहेगा, तू यहाँ से मेरे साथ आ।"

    शिष्य को गुरु की आज्ञा माननी पड़ी और वह लाश को वहीं पड़ी छोड़कर उनके साथ चल दिया।

    संयोग की बात है कि जब ये दोनों आगे बढ़े तो ईसा का एक अन्य शिष्य भी उन्हें अपने पिता की लाश दफनाता हुआ मिला। परंतु जैसे ही उसने अपने गुरु को देखा वैसे ही दौड़कर उनके पास पहुंचा और उनके साथ चल दिया। ईसा ने उसे देखा तो बोले-"अरे तू क्यों चला आ रहा है?"

    शिष्य ने साथ चलने का हठ किया तो ईसा बोले-"ऐसी कोई जल्दी नहीं है। मैं आगे के गाँव में ठहरूँगा। तुम लाश को दफना कर वहीं चले आना।"

    वह शिष्य तो चला गया, परंतु एक समान घटनाओं पर दो प्रकार की व्यवस्था सुनकर मैथ्यू को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने गुरु से पला-"इसका क्या कारण है गरुटेव! आपने मझे तो अपने पिता की लाश को दफनाने भी नहीं दिया और उसे अपने पिता को दफन करने की आपने स्वयं आज्ञा दी। एक प्रकार की घटनाओं पर ही दो प्रकार की आज्ञा क्यों?"

    ईसा ने उसे समझाया-"मैथ्यू! मैं जो कुछ कहता हूँ वही मेरे अंतर की आवाज है और वह आवाज एक निश्चित मत बनाकर निकलती है। जीवन की धारा को एक घाट पर बाँधा जाना कभी संभव नहीं है। धर्म यह कहता है कि एक विचार पर दूसरे विचार को मत टिकने दो। परंतु ऐसा करना लोहे के बंधन को दृढ करने के समान है और मनुष्य का यथार्थ बंधन लौह-श्रृंखला नहीं, कच्चा सूत है।"

    अतः जो राग में फँसा है, उसे वैराग्य का उपदेश दो, परंतु जो राग मुक्त है, उसे वैराग्य का उपदेश देने से कोई लाभ नहीं।

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