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    वैराग्य के लिए कोई तिथि नहीं सोची जाती

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    वैराग्य के लिए कोई तिथि नहीं सोची जाती

    कोई स्त्री अपने पिता के यहाँ से लौटी थी. अपने पति से कह रही थी-"मेरा भाई विरक्त हो गया है। वह अगली दीवाली पर दीक्षा लेकर साध होने वाला है। अभी से उसने तैयारी प्रारंभ कर दी है। वह अपनी संपत्ति की उचित व्यवस्था करने में लगा है।" ___ पत्नी की बात सुनकर पति मुसकराया। स्त्री ने पूछा-"तुम हँसे क्यों? हँसने की क्या बात थी।"

    पति बोला-"और तो सब ठीक है, किंतु तुम्हारे भाई का वैराग्य मुझे बहुत अद्भुत लगा। वैराग्य हो गया है दीक्षा लेने की तिथि

    अभी निश्चित हुई है और वह संपत्ति की उचित व्यवस्था में लगा है।" भौतिक संपत्ति में बुद्धि और इस उत्तम काम में भी इतनी दूर की योजना! इस प्रकार की तैयारी करके त्याग नहीं हुआ करता। त्याग तो सहज ही हुआ करता है।

    स्त्री को बुरा लगा वह बोली-"ऐसे ज्ञानी हो तो तुम्हीं क्यों कुछ कर नहीं दिखाते।"

    "मैं तो तुम्हारी अनुमति की ही प्रतीक्षा में था।" पुरुष ने वस्त्र उतार दिए और एक धोती मात्र पहने घर से निकल पड़ा। स्त्री ने समझा कि यह परिहास है। थोड़ी देर में उसका पति लौट आवेगा, परंतु वह तो लौटने के लिए गया ही नहीं था। सच है वैराग्य के लिए कोई तिथि नहीं सोची जाती।

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