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    अनुकरण अच्छा, अंधानुकरण नहीं

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    अनुकरण अच्छा, अंधानुकरण नहीं 

    एक गाँव में दो युवक रहते थे। दोनों में बड़ी मैत्री थी।जहाँ जाते साथ-साथ जाते। एक बार दोनों एक धनी व्यक्ति के साथ उसकी ससुराल गए। किसी धनी व्यक्ति के साथ रहने का यह पहला अवसर था, सो वे अपने धनी मित्र की प्रत्येक गतिविधि ध्यान से देखते रहे।

    गरमियों के दिन थे। रात में उक्त युवक के लिए शयन की व्यवस्था खुले स्थान पर की गई। पर्याप्त शीतलता बनी रहे इसके लिए वहाँ चारों तरफ जल छिड़का गया और रात को ओढ़ने के लिए बहुत ही हलकी मखमली चादर दी गई।

    अन्य दोनों युवकों ने इतना ही जाना कि इस तरह का रहन-सहन बड़प्पन की बात है। कुछ दिन बाद उन्हें भी अपनी-अपनी ससुराल जाने का अवसर मिला पर वे दिन गरमी के न होकर तीव्र शीत के थे। नकल तो नकल ही है। दोनों ने अपना बड़प्पन जताने के लिए बिस्तर खुले आकाश के नीचे लगवाया, लोगों के लाख मना करने पर भी उन्होंने बिस्तर के आस-पास पानी भी छिड़कवाया और ओढ़ने के लिए कुल एक-एक चादर वह भी हलकी ली।रात को पाला पड़ गया सो दोनों को निमोनियाँ हो गया। चिकित्सा कराई गई तब कठिनाई से जान बची।

    इतनी कथा सुनाने के बाद गुरुजी ने शिष्य को समझाया-"तात! उचित और अनुचित का विचार किए बिना जो औरों का अनुकरण करता है वह मूर्ख ऐसे ही संकट में पड़ता है जैसे वह दोनों युवक।"

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