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    मोक्ष के सम्मुख राज्य तुच्छ है

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    मोक्ष के सम्मुख राज्य तुच्छ है 

    राजा विक्रमादित्य के राज्य में एक सदाचारी संतोषी गरीब मेहनतकश रहता था। वह निर्धन था। स्त्री की प्रेरणा से धन प्राप्ति के निमित्त घर से निकला तो जंगल में एक महात्मा से भेंट हुई। उन्होंने उसे चिंतित देख आश्वासन दिया और विक्रमादित्य को पत्र लिखा कि तुम्हारी इच्छा पूर्ति का अब समय आ गया है। अपना राज्य इस गरीब मेहनतकश को देकर यहाँ चले आओ।

    वह पत्र विक्रमादित्य ने पढ़ा तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और गरीब  को राज्य सौंपने की तैयारी की। गरीब मेहनतकश ने राजा को राज्य-त्याग के लिए इतना उत्सुक और अत्यंत आनंदविभोर देखा तो सोचने लगा कि जब राजा ही राज्य सुख को लात मारकर योगी के पास जाने में विशेष आनंद अनुभव कर रहे हैं तो योगी के पास अवश्य ही कोई राज्य से भी बड़ा सुख है। अतः उसने राजा से कहा-"महाराज! मैं अभी महात्मा जी के पास पुनः जा रहा हूँ लौटकर राज्य लूँगा।" यह कहकर योगी के पास पहुँचकर बोला-"भगवन्! राजा तो राज्य त्याग कर आपके पास आने के लिए नितांत उतावला और हर्षविभोर हो गया इससे जान पड़ता है कि आपके पास राज्य से भी बड़ी कोई वस्तु है, मुझे वही दीजिए।"

    महात्मा ने प्रसन्न हो उसे पूर्ण योगक्रिया सिखाई और गरीब मेहनतकश पूर्ण तपस्वी होकर मोक्ष सुख पा गया। मोक्ष से राज्य सुख नितांत तुच्छ है।

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