शनि देव की अपने पिता सूर्य देव के साथ शत्रुता का कारण
शनि महाराज का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष शनि जन्मोत्सव इस तिथि के दिन मनाया जाता है। धर्म और ज्योतिष की दृष्टि से शनिदेव का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शनि महाराज की जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है जो इस प्रकार है -
संज्ञा के साथ हुआ सूर्य देव का विवाह
कहते हैं सूर्य देव का विवाह संज्ञा के साथ हुआ था। लेकिन सूर्यदेव का तेज इतना था कि संज्ञा उनके इस तेज को सहन नहीं कर पाती थीं। समय बीतता गया और धीरे-धीरे संज्ञा सूर्य देव के विशाल तेज को सहन करती गईं। दोनों की वैवस्त मनु, यम और यमी नामक संतानें भी हुईं। लेकिन अब संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहना मुश्किल होने लगा।
छाया है संज्ञा की परछाई
ऐसे में उन्हें एक उपाय सूझा। उपाय था कि संज्ञा अपनी परछाई छाया को सूर्यदेव के पास छोड़ कर चली जाए। संज्ञा ने ऐसा ही किया। इस दौरान सूर्यदेव को भी छाया पर जरा भी संदेह नहीं हुआ। दोनों खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे। दोनों से सावर्ण्य मनु, तपती, भद्रा एवं शनि का जन्म हुआ।
ऐसे हुआ शनि देव का जन्म
उधर जब शनि छाया के गर्भ में थे तो छाया तपस्यारत रहती थीं और व्रत उपवास भी खूब किया करती थीं। कहते हैं कि उनके अत्यधिक व्रत उपवास करने से शनिदेव का रंग काला हो गया। जब शनि का जन्म हुआ तो सूर्य देव अपनी इस संतान को देखकर हैरान हो गए। उन्होंने शनि के काले रंग को देखकर उसे अपनाने से इंकार कर दिया और छाया पर आरोप लगाया कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता, लाख समझाने पर भी सूर्यदेव नहीं माने।
दोनों के बीच हुई शत्रुता
स्वयं और अपनी माता के अपमान के कारण शनि देव सूर्य देव से शत्रु का भाव रखने लगे। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि और सूर्य एक ही भाव में बैठे हों तो उस व्यक्ति के अपने पिता या अपने पुत्र से कटु संबंध रहेंगे। कुंडली में यदि ये दोनों ग्रह एक ही भाव में हो तो यह जातक के लिए शुभ नहीं होता है। ऐसे व्यक्ति की अपने पिता से नहीं बनती है।
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