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    जो व्यक्ति दुख के कारणों को नष्ट करने की खोज कर रहा है, उसे मैं धार्मिक कहता हूँ - ओशो

    जो व्यक्ति दुख के कारणों को नष्ट करने की खोज कर रहा है, उसे मैं धार्मिक कहता हूँ - ओशो

     

     जो व्यक्ति दुख के कारणों को नष्ट करने की खोज कर रहा है, उसे मैं धार्मिक कहता हूँ

              सुख की खोज एकमात्र भ्रांति है, एकमात्र अज्ञान है। सुख की खोज से दुख नहीं मिटेगा। दुख के निदान, दुख के कारण को जानने, पहचानने और अमटा ने से दुख मिटेगा तो पहली तो बात यह कि सुख की खोज भ्रांत है और दुख को स पर्श भी नहीं करती है, दुख के ऊपर-ऊपर फैल जाती है और भीतर दुख मजबूत ब ना रहता है, उसे कहीं भी नहीं छूती है। यह वैसी ही है जैसी कोई एक वृक्ष हो और हम उसकी जड़ों को तो काटें नहीं और उसके पत्तों को काटते रहें।

              क्या आप जानते हैं कि पत्तों के काटने से और ज्यादा पत्ते वृक्ष में आ जाएंगे? क्या कोई वृक्ष पत्तों के काटने से नष्ट होता है? नहीं, और भी सघन हो जाता है। और भी घना हो जाता है। और भी उसके विकास के मार्ग खुल जाते हैं। वृक्ष नष्ट होता है जड़ों को नष्ट करने से। सख की खोज दुख के पत्त ो को छांटने जैसी है, दुख की जड़ को नष्ट करने जैसी नहीं है।

              जो व्यक्ति सख की  खोज कर रहा है, उसे मैं अधार्मिक कहता हूं और जो व्यक्ति दुख के कारणों को नष्ट करने की खोज कर रहा है, उसे मैं धार्मिक कहता हूं। उनको धार्मिक नहीं कह ता जो मंदिर जा रहे हों, प्रार्थना कर हरे हों; क्योंकि हो सकता है, उनका मंदिर जाना और प्रार्थना करना सभी सुख की खोज है। दुख को मिटाने का वैज्ञानिक उपाय नहीं है.

              इस बात को ठीक से समझ लेना। यह हो सकता है कि मंदिर में उनकी प्रार्थना सुख को ही पाने की खोज का हिस्सा हो और वह भगवान को भी सुख की ख ज में अध्यात्म बनाना चाहते हों और वहां भी जाकर प्रार्थना कर रहे हों सुख को पाने की। और अगर भगवान उन्हें सुख देता हुआ मालूम पड़े तो वे मानेंगे कि भगव न है और कुछ नारियल चढ़ाएंगे, फूल चढ़ाएंगे। और अगर सुख देता हुआ न मालू म पड़े तो वे इनकार करेंगे कि भगवान का कोई प्रमाण नहीं मिलता। हम तो दुखी हैं। उनकी सूख की खोज ही उन्हें दुकान से हटाकर मंदिर तक ले जा सकती है। ले कन सुख के खोजी को मैं धार्मिक नहीं कहता हूं।

    - ओशो

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