दुःख को अकेले में भोग लें, उसे बांटे नहीं- ओशो
दुःख को अकेले में भोग लें, उसे बांटे नहीं- ओशो
जब तुम्हें दुख आए,
तो उसे भोग
लो।
उसे बांटो मत।
द्वार—दरवाजे बंदकर लो, रो लो,
छाती पीट लो, आंसू बहा लो, जल उठो दुख में, भस्म
हो जाओ, मगर दूसरे को मत दो, बाटो मत।
कितना ही
भारी पड़े।
टूट जाए कमर, गर्दन गिर जाए गिर जान
दो,मगर दुख को झेल लो।
दुःख से बचो मत। वह चुकतारा करना ही होगा। वह तुम्हारा ऋण है।
वह तुम्हें
चुकाना ही होगा। दुख को स्यात में झेल लो।
इसीलिए साधु एकांत में जाता है। वह सिर्फ समाधि
की खोज में ही एकांत में नहीं जाता। क्योंकि मेरीसमझ है, समाधि तो भरे बाजार में मिल जाती है.. मैं यह कहना चाहता हूं कि लोग एकांत में गए है
सिर्फ
इसलिए, ताकि दुःख को अकेले में भोग लें और किसीको देना न पड़े। न होगा कोई, न दे सकेंगे, न किसी पर फेंक सकेंगे। झेल लेंगे। वह झेलना निखारेगा।
जैसे आग सोने को निखारते है। उसे झेलने से तुम कुंदन होकर बाहर आओगे। तुम्हारा रूप निखार जाएगा,
तुम्हें अपरिसीम सौंदर्य मिलेगा।
एस धम्मो सनंतनो–भाग-6
तो उसे भोग
लो।
उसे बांटो मत।
द्वार—दरवाजे बंदकर लो, रो लो,
छाती पीट लो, आंसू बहा लो, जल उठो दुख में, भस्म
हो जाओ, मगर दूसरे को मत दो, बाटो मत।
कितना ही
भारी पड़े।
टूट जाए कमर, गर्दन गिर जाए गिर जान
दो,मगर दुख को झेल लो।
दुःख से बचो मत। वह चुकतारा करना ही होगा। वह तुम्हारा ऋण है।
वह तुम्हें
चुकाना ही होगा। दुख को स्यात में झेल लो।
इसीलिए साधु एकांत में जाता है। वह सिर्फ समाधि
की खोज में ही एकांत में नहीं जाता। क्योंकि मेरीसमझ है, समाधि तो भरे बाजार में मिल जाती है.. मैं यह कहना चाहता हूं कि लोग एकांत में गए है
सिर्फ
इसलिए, ताकि दुःख को अकेले में भोग लें और किसीको देना न पड़े। न होगा कोई, न दे सकेंगे, न किसी पर फेंक सकेंगे। झेल लेंगे। वह झेलना निखारेगा।
जैसे आग सोने को निखारते है। उसे झेलने से तुम कुंदन होकर बाहर आओगे। तुम्हारा रूप निखार जाएगा,
तुम्हें अपरिसीम सौंदर्य मिलेगा।
एस धम्मो सनंतनो–भाग-6
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