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    करुणा का आविर्भाव- ओशो

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    करुणा का आविर्भाव- ओशो

                   बुद्ध ने अपने पिछले जीवन की कहानियां कही हैं।
    बुद्ध ने कहा है, कभी मैं जंगल में एक हाथी था। जंगल में आग लग गई थी। सारे पशु-पक्षी भागे जा रहे थे। दुःख से कौन नहीं बचना चाहता है ? तो बुद्ध ने कहा, सारे जंगल के पशु भागने लगे, मैं भी भागा। थक गया था। एक वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया क्षण भर विश्राम को।
                 फ़िर जैसे ही मैंने पैर उठाया वहां से हटने को, एक खरगोश भागा हुआ आया, और जो जगह खाली हो गई थी मेरे पैर के उठाने से, उस जगह आकर बैठ गया।
    पैर उठा हुआ ऊपर हाथी का, खरगोश नीचे बैठ गया।
    बुद्ध ने कहा, मेरे मन में हुआ, मैं भी भाग रहा हूँ प्राण को बचाने को, यह खरगोश भी भाग रहा है प्राण बचाने को -- प्राण को बचाने के संबंध में किसी में कोई भेद नहीं है।
                  मेरे पास बहुत बड़ी देह है, इस खरगोश के पास बड़ी छोटी देह है। मेरे पैर के पड़ते ही यह विनष्ट हो जाएगा।
                   करूणा का आविर्भाव हुआ ! और बुद्ध ने कहा कि मैं खड़ा रहा, जब तक कि यह खरगोश हट न जाए, क्योंकि मैं पैर रखूंगा तो यह मर जाएगा।
                 आग बढ़ती गई, खरगोश भागा नहीं; वह सुरक्षित था। शायद उसने सोचा हो कि जब हाथी भी नहीं भाग रहा है तो कोई डर नहीं है। बड़ों के पीछे छोटे चलते हैं। तो वह बैठा ही रहा सुरक्षित।
              आग भयंकर हो गई और हाथी जल कर मर गया।बुद्ध ने कहा है, उस जन्म में ही मैंने मनुष्यत्व को पाने की क्षमता पाई -- उस घड़ी में जब मैंने खरगोश पर करूणा की और मैं पैर को रोके खड़ा रहा। उसी क्षण मैंने मनुष्य होने की क्षमता अर्जित कर ली।
    आज मैं मनुष्य हूँ उसी घड़ी के वरदान - स्वरूप। उस छड़ करुणा के आविर्भाव से ही मुझे ये मनुष्य योनि प्राप्त हुई !!!

    - ओशो

    कहे कबीर दीवाना, प्रवचन

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