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    प्रश्न: ओशो आपकी दृष्टि से तो घर— द्वार छोड़ना व्यर्थ है? - ओशो


    प्रश्न: ओशो आपकी दृष्टि से तो घर— द्वार छोड़ना व्यर्थ है?


          मैं महावीर का एक सूत्र याद करता हूं। महावीर ने कहा है — मूर्च्छा परिग्रह है। उन्होंने परिग्रह मूर्च्छा है, ऐसा क्यों नहीं कहा? हमारे अज्ञान के कारण, हमारी अंतस—मूर्च्छा के कारण, हममें वस्तुओं के प्रति आसक्ति है। हम भीतर तो खाली और दरिद्र हैं और इसलिए बाहर की वस्तुओं से ही अपने को भर लेना चाहते हैं। उस भांति ही हम अपने को भ्रम देते हैं कि हम कुछ हैं। ऐसी स्थिति में यदि कोई आसक्ति छोड़ेगा और भीतर अज्ञान बना ही रहा तो क्या आसक्ति छूट सकेगी?

          वस्तुएं छूट जाएंगी पर आसक्ति नहीं छूटेगी। घर छूट जाएगा तो आश्रम में आसक्ति आ जाएगी। परिवार छूट जाएगा तो संप्रदाय में आसक्ति आ जाएगी। आसक्ति भीतर है तो वह नई स्थितियों में अपना प्रकाशन बना लेगी। इसलिए जो जानते हैं उन्होंने वस्तुएं छोड़ने को नहीं, मूर्च्छा छोड़ने को कहा है, अज्ञान छोड़ने को कहा है। ज्ञान के आगमन पर जो व्यर्थ है, वह छोड़ना नहीं होता है, अपने आप छूट जाता है

    -ओशो

    साधना पथ (प्रवचन-3)

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